Picnic : a very different experience
कल मैं अपने कुछ मित्रों के साथ पिकनिक पर निकला था . रोज रोज की बिजनेस मीटिंगों और पारिवारिक उलझनों से ऐसी मोनोटोनी सी हो जाती है कि दिल करता है कहीं दूर निकल जाएँ. ऐसी जगह जहाँ न कोई आफिस की तनातनी हो न रोज सड़क के बम्पर टू बम्पर ट्रेफिक में घंटों कार में बैठने की टेंशन न ही घर की उलझन . वैसे तो जहाँ बरसात शुरू हुई नहीं पहाड़ों पर जगह जगह सोते फूट पड़ते हैं , बरसात से पहाड़ों की छठा ही बदल जाती है, जैसे प्रकृति ने हरा कारपेट ही ओढा दिया हो , यह हरा भरापन मन मोह लेता है. महाड के जरा आगे एक जबरदस्त फाल है उसकी लोग काफी तारीफ़ करते हैं, इस पिकनिक का गंतव्य यह फाल ही था. कल की पिकनिक कई मामलों में यादगार बन गई. बात करतें हैं रास्ते में आयी चुनौतियों की .बस का ड्राइवर सुबह 6.30 की जगह 7.30 पर पहुंचा, चलने से पहले ही एक घंटे की देर हो गई. अँधेरी फ्लाई - ओवर क्रास करते ही बस रुक गयी पता चला कि डीजल ही ख़तम हो गया है. बस यूनी...