Nazm : VOH LADKEE

वोह लड़की  कभी गाँव की जीनत हुआ करती थी 
वोह लड़की  कभी पनघट की रौनक हुआ करती थी 
वोह अक्सर हवाओं के साथ सरगोशियाँ किया करती थी 
वोह अक्सर फिजाओं से अठखेलियां किया करती थी 
उसकी आँखों में बसते थे दिन के उजाले 




उसने आँचल में समेट  रखे थे चाँद सितारे 
तितली की  तरहा  बागों में  वोह  भागती थी
मोहल्ले के हर घर में वोह झांकती थी  
 उसके हाथों ने मेरी माँ की चोटियों को संवारा 
 मेरी बा की ममता को एकटक निहारा 
यही वो लड़की  थी जिसे में चाहता था 
रूह में बसती  थी मुकद्दर उसे मानता था 
आँखों ही आँखों में मुझसे बहुत कुछ वो बोली 
मगर मैं तो  डरता था  जुवां  तक ना खोली 
उन दिनों में हुआ करता था मुफलिस सा शायर 
न दिन का भरोसा था न रातों की मंजिल 
उसे दिल से चाहा सो दूर उससे चला आया 
मिली मुझको दौलत मगर प्यार खो आया 
वक्त के भंवर में मुझसे वो खो गयी है 
यादों के दरीचों में अब भी बसी है 
वोह लड़की इस सदा को गर सुन रही हो 
मेरे दिल की आहों को कहीं सुन रही हो 
मैं उससे यही सिर्फ यही कहना चाहता हूँ 
शिद्दत अब भी उसे चाहता हूँ.   
शिद्दत अब भी उसे चाहता हूँ..

@ प्रदीप गुप्ता

   

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