Hindi Ghazal

कितने जख्मों को हृदय में रखा हुआ  हूँ  
फिर  भी  हँसता  और गाता ही रहा हूँ .


जब  छला  है  मेरे सपनों को किसी ने 
ठीक उस क्षण मैं  बहुत तनहा हुआ हूँ .


इस महाभारत में मिले गर कोई किशन 
मैं भी इस रण को तो बस जीता हुआ हूँ .


तुम तो सागर की तरह आ के जुड़े हो   
मैं तो  फिर भी एक   घट रीता रहा हूँ.


साम, सबद , ऋचाएं और मस्जिद  की अजानें 
बीच इन सबके  मैं नाद अनहद का   रहा हूँ .  


वो गए हैं अपनी यादों के चिरागों को सजा  कर 
मैं तो बस स्नेह की बाती बना जलता रहा  हूँ .
                              
                                            @ प्रदीप गुप्ता 

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