Picnic : a very different experience
कल मैं अपने कुछ मित्रों के साथ पिकनिक पर निकला था .
रोज रोज की बिजनेस मीटिंगों और पारिवारिक उलझनों से ऐसी मोनोटोनी सी हो जाती है कि दिल करता है कहीं दूर निकल जाएँ. ऐसी जगह जहाँ न कोई आफिस की तनातनी हो न रोज सड़क के बम्पर टू बम्पर ट्रेफिक में घंटों कार में बैठने की टेंशन न ही घर की उलझन . वैसे तो जहाँ बरसात शुरू हुई नहीं पहाड़ों पर जगह जगह सोते फूट पड़ते हैं , बरसात से पहाड़ों की छठा ही बदल जाती है, जैसे प्रकृति ने हरा कारपेट ही ओढा दिया हो , यह हरा भरापन मन मोह लेता है. महाड के जरा आगे एक जबरदस्त फाल है उसकी लोग काफी तारीफ़ करते हैं, इस पिकनिक का गंतव्य यह फाल ही था.
कल की पिकनिक कई मामलों में यादगार बन गई. बात करतें हैं रास्ते में आयी चुनौतियों की .बस का ड्राइवर सुबह 6.30 की जगह 7.30 पर पहुंचा, चलने से पहले ही एक घंटे की देर हो गई. अँधेरी फ्लाई - ओवर क्रास करते ही बस रुक गयी पता चला कि डीजल ही ख़तम हो गया है. बस यूनी लीवर के खूबसूरती से बने लैंडस्केप आफिस के बाजु में खड़ी हो गयी, क्लीनर कैन लेकर ऑटो में बैठ कर करीबी पेट्रोल पम्प पर गया, डीजल लाया, बस स्टार्ट करने की कोशिश की पर इंजन एयर ले चुका था, पम्पिंग की, राम राम करके बस स्टार्ट हुई. इस कवायद में भी तकरीबन एक घंटा चला गया. यदि आप का चीजों को देखने का नजरिया रचनात्मक हो तो आप सोचेंगे कि गनीमत है टंकी शहर में ही खाली हुई अगर बीच रास्ते में होती तो और भी परेशानी होती, यार लोगों ने यह भी कहा कि बस ठीक नहीं होती कोई बात नहीं , यूनी लीवर आफिस के गार्डन में ही पिकनिक मना सकते हैं.
पहले हमें महाड से जरा आगे एक रिसोर्ट में पहुंचना था. वहां नाश्ता करके फिर आगे वाटर फाल पर जाना था. सब लोग फाल में नहाने की जबरदस्त तयारी करके आये थे. लेकिन ऊपर बाले ने अपने लिए कुछ और ही सोच रखा था. यू. के. रिसोर्ट में हम पहुंचे. यू .के. का कोई कनेक्शन ब्रिटिश सरकार या फिर फिरंगियों से नहीं है, मलाड में मार्वे रोड पर मीठ चौकी के पास एक छोटा सा ढाबा हुआ करता था नाम था अंकिल किचन , यह फिल्म वालों में और मध् मार्वे बीच जाने बाले लोगों के बीच अपने नान वेज खाने की वजह से वर्ष 80 से 90 के बीच वेहद लोकप्रिय हुआ करता था उसी के स्वामियों ने अपने ढाबे के नाम अंकल किचन के संक्षिप्त रूप से यू .के. ले कर इस रिसोर्ट का नामकरण किया था . हम ने वहां नाश्ता किया और वाटर फाल में मौज मस्ती के लिए बाहर निकले. हमारे रिसोर्ट में पहुँचने के बाद जबरदस्त बारिश हुई थी. ड्राइवर ने बस स्टार्ट की , बस आगे बढी ही नहीं, पहिये गीली मिटटी में घूमने लगे. एक नयी चुनौती खड़ी हो गयी, यार लोग ड्राइवर को सलाहें देने लगे , चलो रिवर्स में स्टार्ट करो हम भी पीछे धक्का लगाते हैं, बच्चे बूढ़े और जवान सब ने मिल कर जोर लगाया, बस आगे बड़ी ही नहीं पहिये और गहरे धँस गए , गंभीर समस्या, फाल जाना दूर अब बापस कैसे जायेंगे यह सोच विचार शुरू हो गया. ड्राइवर बोला में कुछ न कुछ करता हूँ, लेकिन आधा घंटा लगेगा. महिलाएं और बच्चे सीधे रिसोर्ट के स्विमिंग पूल में पहुँच गए इसे कहते हैं गयी भैस पानी में .पूल में बालीबाल, फ़ुटबाल ऐसा जमा की लोग भूल ही गए कि बस ख़राब है या फिर आगे भी जाना है, पूल के बाजू में रेन डांस भी था, पूल से निकल कर सब रेन डांस में लग गए, एक जमाना था जब संभ्रांत होने की पहचान अंग्रेजी गीतों पर फिरंगी ठुमके लगना होता था लेकिन अब बालीवुड का जादू सर चढ़ कर बोलता है, पापुलर बालीवुड गाने और स्प्रिन्क्लरों से निकलने बाली मिस्ट जैसी फुहार समय जैसे रुक गया था, मैं शायद अकेला ही था जिसे बस ठीक होने और वाटर फाल जाने की चिंता थी, रिसोर्ट के मेनेजर ने एक डम्पर की व्यवस्था की, डम्पर ने आके बस को खींचा. बस के धंसे हुए पहिये डम्पर के जोर से गारे से निकल आये. लेकिन इस सारे प्रकरण में घडी ढाई बजा चुकी थी, पिकनिक टोली को पूल और रेन डांस की कवायद के बाद जबरदस्त भूख लग चुकी थी, खाना हुआ, एक दौर हौजी का भी चला . फिर तो वाटर फाल का किसी ने नाम ही नहीं लिया. पास में ही इच्छापूर्ति स्वम्भू गणपती मंदिर था, सब ने वहां जा कर दर्शन किये और सीधे बम्बई की ओर प्रस्थान कर दिया .
बापसी में एक छोटा सा हादसा होते होते रह गया, बस अंदाजन 100 कि . मी. की गति में रही होगी. किसी ने आवाज लगाई, रोको बस रोको गिर गया है. लोगों को लगा कि कोई बच्चा बाहर गिर गया है. ड्राइवर ने जरा समझदारी से काम लिया. फ़ौरन ब्रेक न लगा कर पहले बस को आखिरी लेन में लिया और आराम से रोका, अगर वह फ़ौरन रोकता तो पीछे से कई वाहन धुक जाते . पता चला कि बस के एक नौजवान हमसफ़र खिड़की से ज़रा हाथ निकाल कर मोबाइल पर बात कर रहे थे, बराबर की लेन से तेजी से गुजरे बड़े वाहन के द्वारा पैदा किये हवा के दवाब से मोबाइल हाथ से हवा में उड़ गया! बच्चा पार्टी बस से उतर कर दौड़ते दौड़ते दो ढाई कि .मी. पीछे गयी, मोबाइल मिल गया, बस उसकी बैटरी नहीं मिल पायी. इस तरह से पिकनिक का अंत दुखांत होते होते सुखांत हो गया!
रोज रोज की बिजनेस मीटिंगों और पारिवारिक उलझनों से ऐसी मोनोटोनी सी हो जाती है कि दिल करता है कहीं दूर निकल जाएँ. ऐसी जगह जहाँ न कोई आफिस की तनातनी हो न रोज सड़क के बम्पर टू बम्पर ट्रेफिक में घंटों कार में बैठने की टेंशन न ही घर की उलझन . वैसे तो जहाँ बरसात शुरू हुई नहीं पहाड़ों पर जगह जगह सोते फूट पड़ते हैं , बरसात से पहाड़ों की छठा ही बदल जाती है, जैसे प्रकृति ने हरा कारपेट ही ओढा दिया हो , यह हरा भरापन मन मोह लेता है. महाड के जरा आगे एक जबरदस्त फाल है उसकी लोग काफी तारीफ़ करते हैं, इस पिकनिक का गंतव्य यह फाल ही था.
कल की पिकनिक कई मामलों में यादगार बन गई. बात करतें हैं रास्ते में आयी चुनौतियों की .बस का ड्राइवर सुबह 6.30 की जगह 7.30 पर पहुंचा, चलने से पहले ही एक घंटे की देर हो गई. अँधेरी फ्लाई - ओवर क्रास करते ही बस रुक गयी पता चला कि डीजल ही ख़तम हो गया है. बस यूनी लीवर के खूबसूरती से बने लैंडस्केप आफिस के बाजु में खड़ी हो गयी, क्लीनर कैन लेकर ऑटो में बैठ कर करीबी पेट्रोल पम्प पर गया, डीजल लाया, बस स्टार्ट करने की कोशिश की पर इंजन एयर ले चुका था, पम्पिंग की, राम राम करके बस स्टार्ट हुई. इस कवायद में भी तकरीबन एक घंटा चला गया. यदि आप का चीजों को देखने का नजरिया रचनात्मक हो तो आप सोचेंगे कि गनीमत है टंकी शहर में ही खाली हुई अगर बीच रास्ते में होती तो और भी परेशानी होती, यार लोगों ने यह भी कहा कि बस ठीक नहीं होती कोई बात नहीं , यूनी लीवर आफिस के गार्डन में ही पिकनिक मना सकते हैं.
पहले हमें महाड से जरा आगे एक रिसोर्ट में पहुंचना था. वहां नाश्ता करके फिर आगे वाटर फाल पर जाना था. सब लोग फाल में नहाने की जबरदस्त तयारी करके आये थे. लेकिन ऊपर बाले ने अपने लिए कुछ और ही सोच रखा था. यू. के. रिसोर्ट में हम पहुंचे. यू .के. का कोई कनेक्शन ब्रिटिश सरकार या फिर फिरंगियों से नहीं है, मलाड में मार्वे रोड पर मीठ चौकी के पास एक छोटा सा ढाबा हुआ करता था नाम था अंकिल किचन , यह फिल्म वालों में और मध् मार्वे बीच जाने बाले लोगों के बीच अपने नान वेज खाने की वजह से वर्ष 80 से 90 के बीच वेहद लोकप्रिय हुआ करता था उसी के स्वामियों ने अपने ढाबे के नाम अंकल किचन के संक्षिप्त रूप से यू .के. ले कर इस रिसोर्ट का नामकरण किया था . हम ने वहां नाश्ता किया और वाटर फाल में मौज मस्ती के लिए बाहर निकले. हमारे रिसोर्ट में पहुँचने के बाद जबरदस्त बारिश हुई थी. ड्राइवर ने बस स्टार्ट की , बस आगे बढी ही नहीं, पहिये गीली मिटटी में घूमने लगे. एक नयी चुनौती खड़ी हो गयी, यार लोग ड्राइवर को सलाहें देने लगे , चलो रिवर्स में स्टार्ट करो हम भी पीछे धक्का लगाते हैं, बच्चे बूढ़े और जवान सब ने मिल कर जोर लगाया, बस आगे बड़ी ही नहीं पहिये और गहरे धँस गए , गंभीर समस्या, फाल जाना दूर अब बापस कैसे जायेंगे यह सोच विचार शुरू हो गया. ड्राइवर बोला में कुछ न कुछ करता हूँ, लेकिन आधा घंटा लगेगा. महिलाएं और बच्चे सीधे रिसोर्ट के स्विमिंग पूल में पहुँच गए इसे कहते हैं गयी भैस पानी में .पूल में बालीबाल, फ़ुटबाल ऐसा जमा की लोग भूल ही गए कि बस ख़राब है या फिर आगे भी जाना है, पूल के बाजू में रेन डांस भी था, पूल से निकल कर सब रेन डांस में लग गए, एक जमाना था जब संभ्रांत होने की पहचान अंग्रेजी गीतों पर फिरंगी ठुमके लगना होता था लेकिन अब बालीवुड का जादू सर चढ़ कर बोलता है, पापुलर बालीवुड गाने और स्प्रिन्क्लरों से निकलने बाली मिस्ट जैसी फुहार समय जैसे रुक गया था, मैं शायद अकेला ही था जिसे बस ठीक होने और वाटर फाल जाने की चिंता थी, रिसोर्ट के मेनेजर ने एक डम्पर की व्यवस्था की, डम्पर ने आके बस को खींचा. बस के धंसे हुए पहिये डम्पर के जोर से गारे से निकल आये. लेकिन इस सारे प्रकरण में घडी ढाई बजा चुकी थी, पिकनिक टोली को पूल और रेन डांस की कवायद के बाद जबरदस्त भूख लग चुकी थी, खाना हुआ, एक दौर हौजी का भी चला . फिर तो वाटर फाल का किसी ने नाम ही नहीं लिया. पास में ही इच्छापूर्ति स्वम्भू गणपती मंदिर था, सब ने वहां जा कर दर्शन किये और सीधे बम्बई की ओर प्रस्थान कर दिया .
बापसी में एक छोटा सा हादसा होते होते रह गया, बस अंदाजन 100 कि . मी. की गति में रही होगी. किसी ने आवाज लगाई, रोको बस रोको गिर गया है. लोगों को लगा कि कोई बच्चा बाहर गिर गया है. ड्राइवर ने जरा समझदारी से काम लिया. फ़ौरन ब्रेक न लगा कर पहले बस को आखिरी लेन में लिया और आराम से रोका, अगर वह फ़ौरन रोकता तो पीछे से कई वाहन धुक जाते . पता चला कि बस के एक नौजवान हमसफ़र खिड़की से ज़रा हाथ निकाल कर मोबाइल पर बात कर रहे थे, बराबर की लेन से तेजी से गुजरे बड़े वाहन के द्वारा पैदा किये हवा के दवाब से मोबाइल हाथ से हवा में उड़ गया! बच्चा पार्टी बस से उतर कर दौड़ते दौड़ते दो ढाई कि .मी. पीछे गयी, मोबाइल मिल गया, बस उसकी बैटरी नहीं मिल पायी. इस तरह से पिकनिक का अंत दुखांत होते होते सुखांत हो गया!
| पहिये फँस गए गारे में |
| अब कोई जुगत लगाएं कैसे बापस जायेंगे |
| लो जी गयी भैस पानी में |
| टाइम रैप में फँस गया ग्रुप |
| वाटर फाल इसके सामने क्या चीज है |
| बालीवुड की तर्ज पर रेन डांस |
| बरसात में खूबसूरत नदिया, पहाड़ |
| स्वम्भू गणपति दर्शन |
A very honest travelogue very inspiring indeed
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