ghazal : आज फिर झूम के बरसा पानी
इन दिनों मैं अपनी यादों के दरीचे से निकाल निकाल कर चंद ग़ज़लें पेश कर रहा हूँ , हो सकता है कि ये आपको बहुत उम्दा न लगें लेकिन मेरे लिए ये भावनात्मक दस्तावेज से कम नहीं हैं, उसी दौर की एक और ग़ज़ल से रु-ब-रु करा देता हूँ .
आज फिर झूम के बरसा पानी
छू के धरती का बदन बहका पानी
बाद अरसे के कल वो जो मिला मुझको
होंठ खामोश रहे आँख से छलका पानी
तैरना चाहा था इन आँखों की गहराई में
गुम गया निकला सागर से भी गहरा पानी
जिस तरह कट रहे जंगल इन दिनों देखो
कैसे बच पायेगा झील में उजला पानी
लोग कुछ इस तरह भी जी लेते हैं
बाद बरसात के तालाब में ठहरा पानी
@प्रदीप गुप्ता
आज फिर झूम के बरसा पानी
छू के धरती का बदन बहका पानी
बाद अरसे के कल वो जो मिला मुझको
होंठ खामोश रहे आँख से छलका पानी
तैरना चाहा था इन आँखों की गहराई में
गुम गया निकला सागर से भी गहरा पानी
जिस तरह कट रहे जंगल इन दिनों देखो
कैसे बच पायेगा झील में उजला पानी
लोग कुछ इस तरह भी जी लेते हैं
बाद बरसात के तालाब में ठहरा पानी
@प्रदीप गुप्ता
Comments
Post a Comment