Ghazal : दिल दुपट्टे की मानिंद हिलता रहा
कारवां जब अजानी डगर पे चला
होठ कांपे और कुछ कहा अनकहा
दिल दुपट्टे की मानिंद हिलता रहा
कितना दुश्वार करना किसी को विदा
कह न पाए ग़ज़ल गीत में जो कवि
आँख की कोर ने सब बयां कर दिया
अब हँसी में भी रहती है पीड़ा छुपी
जिसको रंगों ने चेहरे पे लिख दिया
उस नदी के किनारे नीम का पेड़ है
जहाँ साथ रक्खा था जलता दिया
इस अधूरे फ़साने में कई पेंच थे
खोलते खोलते इक ज़माना गया
रात आती रही रात जाती रही
सेज को याद बस सजाया किया
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