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Showing posts from March, 2020

Hindi Poetry : प्यार

*  Love Poetry in Locked down : एकांतवास की प्रेम कथा* इस लॉक्ड-डाउन ने इंसान को एकांतवास  में भेज दिया है बस 625 वर्ग फ़ीट के मैच बॉक्स में पड़े रहो सड़क ख़ामोश पड़ी है कहीं कोई शोर शराबा नहीं रात को बालकनी में बैठ के तारों को निहारता रहता हूँ ये तारे पता नहीं क्यों नीले से दिखायी देते हैं और पहले से कुछ ज़्यादा टिमटिमाते  हैं सामने की पहाड़ी से  छन छन के हवा आ रही है इन दिनों के एकांतवास ने वर्तमान से अतीत में जाने का अवसर दिया है यादों का पिटारा बेसाख़्ता खुलता जा रहा है रात के साथ दर्द उभर रहा है मैंने उसे चाहा था , उसने भी मुझे कुछ अरसे प्यार किया था बरसों पहले ऐसी ही रातों में सितारों के तले बाहों में हुआ  करती थी . हाँ , उन दिनों रातें इतनी स्याह नहीं होती थीं . वो मुझे चाहती थी , मैंने भी कभी उसे प्यार किया था उसकी आँखों में जो कशिश थी उसे देख कर शायद ही कोई उसे प्यार करने से अपने आप को रोक सके . इस रात की तन्हाई के आलम में मैं सोचता हूँ वो मेरी नहीं थी , इसलिए कि मैंने उसे खो दिया मैं रात के इस स्याह दामन को और स्याह महसूस कर रहा...

Hindi Poetry : बम्बई की ये ख़ामोश अंधेरी रातें

बम्बई की ये ख़ामोश अंधेरी रातें आजकल अंधेरे में कितने ही तारे टूटते हुए दिखते हैं ऐसा लगता है रात की खामोशी मेरे शहर को निगलने के लिए साज़िश रच रही है. मेरा शहर बम्बई , जहां रात पहले कभी ऐसी अंधेरी नहीं होती थी निर्बाध चलता रहता था शहर का कारोबार मरीन ड्राइव पर हज़ारों लोगों की चहल पहल हाजी अली दरगाह जाने वाले लोगों की क़तारें सिध्दि विनायक मंदिर के भोर दर्शन के लिए अंधेरी और ठाणे से आते श्रध्दालु साइकिल पर चाय , बन-मस्का , काफ़ी , सींग दाना बेचने  वालों के भौंपू की आवाज , लगातार गुजरती गाड़ियों की सरसराहट, आसमान से लैंडिंग के लिए तैयार विमानों की आवाज़ें. अब तो रात में बालकनी में खड़े हुए होता है खामोशी का डरावना एहसास , मैं देख पाता हूँ सिर्फ़ और सिर्फ़ आसमान में तारे , तारे , तारे टूटते हुए तारे इसके अलावा कुछ भी नहीं बस एक उम्मीद रहती है सूरज की पहली किरण सामने वाली पहाड़ी के पीछे से निकले और रात के इस खामोशी भरे अंधियारे को लील ले.                                   ...

Hindi Poetry : उड़ान

जिनके   पास   पंख   नहीं   हैं   सुबह   से   रात   तक   मशक़्क़त   करते   रहते   हैं   किसी   तरह   उन्हें   पंख   हासिल   हो   जाएँ   जिन   के   पास   पंख   हैं   उन्होंने   बड़े   जतन   से  लगा  लिए   हैं . आज   कल   जो   हालात   हैं   उन्हें   देखते   हुए   यह   तय   करना   मुश्किल   है   उनमें   से   कौन   उड़   पाएगा  .  मुझे   लगता   है   जब   स्थिति   सामान्य   होगी   पृथ्वी   पर   उड़ने   के   लिए   अनुकूल   समय   आ   जाएगा   उस   समय   दोनों     क़िस्म   के   लोग     ऐसे   पंखों   से   उड़   नहीं   पाएँगे  .  उड़ान पंखों से नहीं  हौसले से होती है . ...

Hindi Poetry : * मेरे दर्पण में मेरा चेहरा नहीं दिखता *

* मेरे   दर्पण   में   मेरा   चेहरा   नहीं   दिखता  * मैंने   अपने   पोर्टिको   में   कुछ   साल   पहले   एक   आदमक़द   दर्पण   लगवाया   था   आते   जाते   अक्सर   उसमें   अपने   आप   को   देख   लिया   करता   था  .  पता   नहीं   क्यों   इन   दिनों   अब   मुझे   अपना   अक्स   दिखायी   नहीं   देता   अब   यह   एक   उजाड़   तालाब   जैसा   लगता   है  .  कल   तो   हद   ही   हो   गयी   मुझे   इसमें   अगिनित   निस्तेज   चेहरे   दिखे   जैसे   किसी   ने   खून   निचोड़   लिया   हो  , अजीब   सी   बेबसी  ,  अजीब   सी   लाचारी ,  धीरे   धीरे   मंजर   बदल   गया   सुनसा...

Hindi Poetry : मेरे दो वतन

*   मेरे   दो   वतन :   भारत   और   रात * मेरे दो वतन हुआ करते हैं : भारत और रात. जब सूरज अस्ताचल की तरफ़ चला करता था भारत की जगह ले लेती थी रात. रात जो मेरे लिए सुकून की जगह होती थी दोस्तों के साथ महफ़िलें , मौज मस्ती, परिवार के साथ समय बिताने का कोना. मेरा वतन भारत इन दिनों हैरान है परेशान है उसके हाथ में हमेशा की तरह फूल तो हैं लेकिन वे भी सहमे हुए हैं दिन में भी हावी है रात का अंधेरा. समय जैसे ठहर सा गया है सड़कें वीरान हैं बच्चों की खिलखिलाती हंसी अब सुनाई नहीं देती कहाँ चली गयी गली मोहल्ले में बहुओं के बीच होने वाली सासों की चुग़लियां सासों की आपस में बहुओं पर तंज़ कसती गप्प गोष्ठियाँ गली के नुक्कड़ पर रहीम चाचा की दुकान कई दिनों से नहीं खुल रही है जहां से मोहल्ले का ज़बानी अख़बार रिले होता था मलखान और जोसेफ की चौपड़ कोने में सिमटी पड़ी है अख़बार मेरे दरवाजे में उड़सा नहीं मिलता लोग कह रहे हैं छापना ही बंद हो गया है काक के कार्टून , वर्ग पहेली , सूडोकू की आदत हो गयी थी लगता है बहुत कुछ खो गया है . मैं चाहता हूँ मेरे वतन भा...

Hindi Poetry : शिद्दत

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शिद्दत मेरे   लिए   पहले   उसका   कोई   अस्तित्व   नहीं   था   वो   मेरे   लिए   भाव   भंगिमा   से   ज़्यादा   कुछ   नहीं   थी  .  एक   दिन   मैंने   उसका   नाम   बड़ी   शिद्दत   से   पुकारा   उसने   मेरे   मुँह   से   अपना   नाम   सुना   वो   मेरे   पास   आयी   और   फूल   बन   गयी  .  जिस   तरह   मैंने   उसका   नाम   लेकर   पुकारा   था   मैं   चाहता   हूँ   कोई   मेरा   नाम   लेकर   पुकारे   कुछ   इस   तरह     से   कि   मेरी   गंध   और   एहसास   को   छू   ले   मैं  ,  भी  ,  उसके   क़रीब   जा   कर   फूल   में   बदल   जाऊँगा  . हम   ...

Hindi Poetry : क्या पता हवा की सरगोशी में मैं भी शामिल होऊँ

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* क्या पता हवा की सरगोशी में मैं भी शामिल होऊँ* एक ना एक दिन हरेक को यह नश्वर शरीर छोड़ना ही है मैं किसी दूसरी आकाश गंगा का अजर अमर नहीं हूँ मैं भी एक दिन छोड़ दूँगा . फिर भी मेरी आत्मा तुम्हारे आस पास ज़रूर गुजरा करेगी क्योंकि मैंने तुम्हें बहुत चाहा है उस समय तुम यह मत समझ लेना बसंत का खुशनुमा झोंका तुम्हें छू कर निकल गया है . सोचता हूँ आज मैं तुम्हारी खिड़की के नीचे एक गुलाब का पौधा रोप दूँ ठीक उसी जगह जहां तुम मुझे देख कर पहली बार मुस्कुरायी थीं और मैं तुम्हारा हो कर रह गया था . जब इस पर फूल खिलेंगे तो  कुछ बरसों बीच का तनाव इन की पंखुड़ियों में बदल कर हवा के साथ उड़ जाएगा सच कहता हूँ हवा में उड़ जाएगा . हालाँकि यह काफ़ी बाद में सम्भव होगा और शायद अर्थहीन भी हो जाए. आख़िर हम दुनिया की सारी चीजें छोटे से एक पैमाने से नापना चाहते हैं. फ़िलहाल तो पौधा रोपना है . प्रिय, जब तुम इस खिड़की में बैठो हवा की सरसराहट को सुनने की कोशिश करो तो ध्यान देना शायद मेरे शब्द उसमें घुले हुए हों .                - प्रदीप गुप्ता...

Hindi Poetry : अजीब वक्त से वाबस्ता हैं हम

अजीब   वक्त   से   वाबस्ता   हैं   इन   दिनों   करने   लगे   हैं   अपने   ही   लोगों   से   अलग   रहने   की   दुआ . कल   एक   मित्र   बड़ी   मोहब्बत   से   लिट्टी   चोखा   दे   गए   जिसे   उनकी   मेम   साहब   ने   बड़े   जतन   से   पकाया   था  . यक़ीन   मानिए   वो   ऐसे   ही   रखा   रहा   कई   बार   सोचा   खाऊँ   या   न   खाऊँ  ,  जबकि   पहले   उनके   हाथ   की   बनी   चीज़ों   का   बेसब्री   से   इन्तज़ार   रहता   था  .  मेरे   घर   का   दरवाज़ा     हमेशा   खुला   रहता   था   मित्रों     ही   नहीं   अजनबियों   के   लिए   भी  ,  इन   दिनों ...

Hindi poetry : टाइम मशीन

टाइम   मशीन . अभी   तक   नहीं   आ   सकी   है   आदमी   के   हाथ   में   समय   की   धारा   को   मोड़ने   की   क्षमता इस   लिए   जो   कुछ   करना   है   आज   और   अभी   करना   है   समय   की   धारा   के   विपरीत   जा   कर   अपनी   गलती   दुरुस्त   करने   की   गुंजाइश   नहीं   है  . मैंने   बहुत   सारी   ग़लतियाँ   की   हैं   हर   बार   गलती   करने   के   बाद   में   सोचता   हूँ अगर   ऐसा   होता   तो   बेहतर   होता   वैसा   होता   तो   और   बेहतर   होता  .  इस   तरह   ज़िंदगी   के   कितने   हसीन   लम्हे   हम   इस   पश्चाताप   में   गवां   देते   हैं  . ...