Hindi Poetry : अजीब वक्त से वाबस्ता हैं हम
अजीब वक्त से वाबस्ता हैं इन दिनों
करने लगे हैं अपने ही लोगों से अलग रहने की दुआ.
कल एक मित्र बड़ी मोहब्बत से
लिट्टी चोखा दे गए
जिसे उनकी मेम साहब ने बड़े जतन से पकाया था .
यक़ीन मानिए वो ऐसे ही रखा रहा
कई बार सोचा खाऊँ या न खाऊँ ,
जबकि पहले उनके हाथ की बनी चीज़ों का
बेसब्री से इन्तज़ार रहता था .
मेरे घर का दरवाज़ा हमेशा खुला रहता था
मित्रों ही नहीं अजनबियों के लिए भी ,
इन दिनों बंद ही रहता है ,
एक तो घंटी बजती ही नहीं
अगर घंटी बज भी गयी तो
दरवाज़ा खोलने के लिए
कदम आगे बढ़ते ही नहीं .
और तो और , सौंदर्य बोध तेल लेने चला गया है
खूबसूरत चेहरा देख कर अब
होंठ सीटी बजाने के लिए गोल होते ही नहीं
दिमाग़ की तात्कालिक प्रतिक्रिया यही होती है
ये मास्क लगा कर निकले होते तो अच्छा होता .
जो बच्चे गोदी में आने के लिए मचलते थे
उन्हें देख के मन करता है
दूर ही रहें तो बेहतर है.
एक ही झटके में
चली गयी है रिश्तों की गरमाहट
सिमट गए हैं सभी रिश्ते एक फ़ोन काल तक.
हम अपने बनाए हुए
ऐसे टापू पर बैठ गए हैं
जहां न आती है कोई बस, रेल या कोई फ़्लाइट
हम हैं और साथ में लम्बी तन्हाई .
कैसे वक्त से वाबस्ता हैं हम इन दिनों.
- प्रदीप गुप्ता
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