Hindi Poetry : मेरे दो वतन


* मेरे दो वतन : भारत और रात*

मेरे दो वतन हुआ करते हैं : भारत और रात.
जब सूरज अस्ताचल की तरफ़ चला करता था
भारत की जगह ले लेती थी रात.
रात जो मेरे लिए सुकून की जगह होती थी
दोस्तों के साथ महफ़िलें , मौज मस्ती, परिवार के साथ समय बिताने का कोना.
मेरा वतन भारत इन दिनों हैरान है परेशान है
उसके हाथ में हमेशा की तरह फूल तो हैं
लेकिन वे भी सहमे हुए हैं
दिन में भी हावी है रात का अंधेरा.
समय जैसे ठहर सा गया है
सड़कें वीरान हैं
बच्चों की खिलखिलाती हंसी अब सुनाई नहीं देती
कहाँ चली गयी गली मोहल्ले में बहुओं के बीच होने वाली सासों की चुग़लियां
सासों की आपस में बहुओं पर तंज़ कसती गप्प गोष्ठियाँ
गली के नुक्कड़ पर रहीम चाचा की दुकान कई दिनों से नहीं खुल रही है
जहां से मोहल्ले का ज़बानी अख़बार रिले होता था
मलखान और जोसेफ की चौपड़ कोने में सिमटी पड़ी है
अख़बार मेरे दरवाजे में उड़सा नहीं मिलता
लोग कह रहे हैं छापना ही बंद हो गया है
काक के कार्टून , वर्ग पहेली , सूडोकू की आदत हो गयी थी
लगता है बहुत कुछ खो गया है .
मैं चाहता हूँ
मेरे वतन भारत के
वो पुराने दिन लौट आएँ
बंद हो जाए
मेरे वतन पर
दिन में हावी  होते रात के अंधेरे
पसरने का यह सिलसिला.
                    - प्रदीप गुप्ता


Comments

Popular posts from this blog

Is Kedli Mother of Idli : Tried To Find Out Answer In Indonesia

A Peep Into Life Of A Stand-up Comedian - Punit Pania

Searching Roots of Sir Elton John In Pinner ,London