Hindi Poetry : क्या पता हवा की सरगोशी में मैं भी शामिल होऊँ

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क्या पता हवा की सरगोशी में मैं भी शामिल होऊँ*

एक ना एक दिन हरेक को यह नश्वर शरीर छोड़ना ही है
मैं किसी दूसरी आकाश गंगा का अजर अमर नहीं हूँ
मैं भी एक दिन छोड़ दूँगा .
फिर भी मेरी आत्मा
तुम्हारे आस पास ज़रूर गुजरा करेगी
क्योंकि मैंने तुम्हें बहुत चाहा है
उस समय तुम यह मत समझ लेना
बसंत का खुशनुमा झोंका तुम्हें छू कर निकल गया है .
सोचता हूँ आज मैं तुम्हारी खिड़की के नीचे
एक गुलाब का पौधा रोप दूँ
ठीक उसी जगह जहां
तुम मुझे देख कर पहली बार मुस्कुरायी थीं
और मैं तुम्हारा हो कर रह गया था .
जब इस पर फूल खिलेंगे
तो  कुछ बरसों बीच का तनाव
इन की पंखुड़ियों में बदल कर हवा के साथ उड़ जाएगा
सच कहता हूँ हवा में उड़ जाएगा .
हालाँकि यह काफ़ी बाद में सम्भव होगा
और शायद अर्थहीन भी हो जाए.
आख़िर हम दुनिया की सारी चीजें
छोटे से एक पैमाने से नापना चाहते हैं.
फ़िलहाल तो पौधा रोपना है .
प्रिय, जब तुम इस खिड़की में बैठो
हवा की सरसराहट को सुनने की कोशिश करो
तो ध्यान देना
शायद मेरे शब्द उसमें घुले हुए हों .
               - प्रदीप गुप्ता

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