Hindi Poetry : बम्बई की ये ख़ामोश अंधेरी रातें

बम्बई की ये ख़ामोश अंधेरी रातें

आजकल अंधेरे में
कितने ही तारे टूटते हुए दिखते हैं
ऐसा लगता है रात की खामोशी
मेरे शहर को निगलने के लिए साज़िश रच रही है.
मेरा शहर बम्बई ,
जहां रात पहले कभी ऐसी अंधेरी नहीं होती थी
निर्बाध चलता रहता था शहर का कारोबार
मरीन ड्राइव पर हज़ारों लोगों की चहल पहल
हाजी अली दरगाह जाने वाले लोगों की क़तारें
सिध्दि विनायक मंदिर के भोर दर्शन के लिए
अंधेरी और ठाणे से आते श्रध्दालु
साइकिल पर चाय , बन-मस्का , काफ़ी , सींग दाना बेचने  वालों के भौंपू की आवाज ,
लगातार गुजरती गाड़ियों की सरसराहट,
आसमान से लैंडिंग के लिए तैयार विमानों की आवाज़ें.
अब तो रात में बालकनी में खड़े हुए होता है खामोशी का डरावना एहसास ,
मैं देख पाता हूँ सिर्फ़ और सिर्फ़
आसमान में तारे , तारे , तारे टूटते हुए तारे
इसके अलावा कुछ भी नहीं
बस एक उम्मीद रहती है
सूरज की पहली किरण
सामने वाली पहाड़ी के पीछे से निकले
और रात के इस खामोशी भरे अंधियारे को लील ले.
                                   - प्रदीप गुप्ता

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