Hindi Poetry : प्यार
* Love Poetry in Locked down : एकांतवास की प्रेम कथा*
इस लॉक्ड-डाउन ने इंसान को एकांतवास में भेज दिया है
बस 625 वर्ग फ़ीट के मैच बॉक्स में पड़े रहो
सड़क ख़ामोश पड़ी है
कहीं कोई शोर शराबा नहीं
रात को बालकनी में बैठ के तारों को निहारता रहता हूँ
ये तारे पता नहीं क्यों नीले से दिखायी देते हैं
और पहले से कुछ ज़्यादा टिमटिमाते हैं
सामने की पहाड़ी से छन छन के हवा आ रही है
इन दिनों के एकांतवास ने वर्तमान से अतीत में जाने का अवसर दिया है
यादों का पिटारा बेसाख़्ता खुलता जा रहा है
रात के साथ दर्द उभर रहा है
मैंने उसे चाहा था , उसने भी मुझे कुछ अरसे प्यार किया था
बरसों पहले ऐसी ही रातों में
सितारों के तले
बाहों में हुआ करती थी . हाँ , उन दिनों रातें इतनी स्याह नहीं होती थीं .
वो मुझे चाहती थी ,
मैंने भी कभी उसे प्यार किया था
उसकी आँखों में जो कशिश थी उसे देख कर
शायद ही कोई उसे प्यार करने से अपने आप को रोक सके .
इस रात की तन्हाई के आलम में
मैं सोचता हूँ वो मेरी नहीं थी , इसलिए कि मैंने उसे खो दिया
मैं रात के इस स्याह दामन को और स्याह महसूस कर रहा हूँ क्योंकि वह मेरे साथ नहीं है
ये अशआ'र मेरी रूह तक पहुँच रहे हैं
जैसे रात भर ओस की बूँदे घास पर टप टप करके गिरती हैं
अब इस बात का कोई महत्व नहीं रह गया है
कि मेरा प्यार उसे रोक नहीं पाया .
अब तो स्याह रात और तन्हाई है
और वो नहीं है .
बस यही हक़ीक़त है . सामने के जंगल में
कोई बांसुरी पर दुःख भरी धुन छेड़ रहा है
पता नहीं क्यों मेरा अंतर्मन अभी भी स्वीकार नहीं कर पाया है कि वो अब मेरे साथ नहीं है .
मेरी आँखें कोशिश करती रहती हैं कि उसे खोज लें
दिल उसे महसूस करता रहता है जबकि वह मेरे पास नहीं है
कभी जिन वृक्षों के नीचे हम बैठा करते थे
अब वो पहचान में नहीं आते हैं
मुझे लगता है मैं अब उससे प्यार नहीं करता
पर यह भी सच है मैंने उसे प्यार किया था ,
प्यार ढ़ेर सारा प्यार.
मेरी आवाज़ उसकी आवाज़ को खोजने की कोशिश करती रहते है
वो अब दूसरे की है यह हक़ीक़त है
उसकी आवाज़ , उसका एहसास , उसकी झील सी आँखें अब किसी ओर की हो चुकी हैं
मुझे लगता है मैं उससे प्यार नहीं करता.
लेकिन सच यह है मैं अभी भी उससे प्यार करता हूँ.
पता नहीं इस लॉक्ड-डाउन के एकांतवास में शायद मेरे बारे में ऐसा ही कुछ सोचती हो.
- प्रदीप गुप्ता
इस लॉक्ड-डाउन ने इंसान को एकांतवास में भेज दिया है
बस 625 वर्ग फ़ीट के मैच बॉक्स में पड़े रहो
सड़क ख़ामोश पड़ी है
कहीं कोई शोर शराबा नहीं
रात को बालकनी में बैठ के तारों को निहारता रहता हूँ
ये तारे पता नहीं क्यों नीले से दिखायी देते हैं
और पहले से कुछ ज़्यादा टिमटिमाते हैं
सामने की पहाड़ी से छन छन के हवा आ रही है
इन दिनों के एकांतवास ने वर्तमान से अतीत में जाने का अवसर दिया है
यादों का पिटारा बेसाख़्ता खुलता जा रहा है
रात के साथ दर्द उभर रहा है
मैंने उसे चाहा था , उसने भी मुझे कुछ अरसे प्यार किया था
बरसों पहले ऐसी ही रातों में
सितारों के तले
बाहों में हुआ करती थी . हाँ , उन दिनों रातें इतनी स्याह नहीं होती थीं .
वो मुझे चाहती थी ,
मैंने भी कभी उसे प्यार किया था
उसकी आँखों में जो कशिश थी उसे देख कर
शायद ही कोई उसे प्यार करने से अपने आप को रोक सके .
इस रात की तन्हाई के आलम में
मैं सोचता हूँ वो मेरी नहीं थी , इसलिए कि मैंने उसे खो दिया
मैं रात के इस स्याह दामन को और स्याह महसूस कर रहा हूँ क्योंकि वह मेरे साथ नहीं है
ये अशआ'र मेरी रूह तक पहुँच रहे हैं
जैसे रात भर ओस की बूँदे घास पर टप टप करके गिरती हैं
अब इस बात का कोई महत्व नहीं रह गया है
कि मेरा प्यार उसे रोक नहीं पाया .
अब तो स्याह रात और तन्हाई है
और वो नहीं है .
बस यही हक़ीक़त है . सामने के जंगल में
कोई बांसुरी पर दुःख भरी धुन छेड़ रहा है
पता नहीं क्यों मेरा अंतर्मन अभी भी स्वीकार नहीं कर पाया है कि वो अब मेरे साथ नहीं है .
मेरी आँखें कोशिश करती रहती हैं कि उसे खोज लें
दिल उसे महसूस करता रहता है जबकि वह मेरे पास नहीं है
कभी जिन वृक्षों के नीचे हम बैठा करते थे
अब वो पहचान में नहीं आते हैं
मुझे लगता है मैं अब उससे प्यार नहीं करता
पर यह भी सच है मैंने उसे प्यार किया था ,
प्यार ढ़ेर सारा प्यार.
मेरी आवाज़ उसकी आवाज़ को खोजने की कोशिश करती रहते है
वो अब दूसरे की है यह हक़ीक़त है
उसकी आवाज़ , उसका एहसास , उसकी झील सी आँखें अब किसी ओर की हो चुकी हैं
मुझे लगता है मैं उससे प्यार नहीं करता.
लेकिन सच यह है मैं अभी भी उससे प्यार करता हूँ.
पता नहीं इस लॉक्ड-डाउन के एकांतवास में शायद मेरे बारे में ऐसा ही कुछ सोचती हो.
- प्रदीप गुप्ता
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