Hindi Poetry : * मेरे दर्पण में मेरा चेहरा नहीं दिखता *

*मेरे दर्पण में मेरा चेहरा नहीं दिखता *

मैंने अपने पोर्टिको में 
कुछ साल पहले एक आदमक़द दर्पण लगवाया था 
आते जाते अक्सर उसमें अपने आप को देख लिया करता था . 
पता नहीं क्यों इन दिनों 
अब मुझे अपना अक्स दिखायी नहीं देता 
अब यह एक उजाड़ तालाब जैसा लगता है . 
कल तो हद ही हो गयी 
मुझे इसमें अगिनित निस्तेज चेहरे दिखे 
जैसे किसी ने खून निचोड़ लिया हो ,
अजीब सी बेबसी , अजीब सी लाचारी
धीरे धीरे मंजर बदल गया 
सुनसान सड़कें , उजाड़ पार्क , 
ख़ामोश बाज़ार , ठहरा हुआ क़स्बा .
मंजर फिर बदल गया 
दोपहर का चढ़ता सूरज है मगर उसकी किरणें 
आग नहीं उगल रही हैं 
पेड़ हैं ठंड से ठिठुर रहे हैं
आख़िर ऐसा क्यों है 
अब इस दर्पण में
सामने खिले हरसिंगार , गुलाब  और चमेली के फूल नहीं दिखते हैं 
ना ही दिखता है मेरा चेहरा.
मेरे इस दर्पण को किसी की नज़र लग गयी है .


                   - प्रदीप गुप्ता 

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