क्या गुलशन नंदा के पल्प साहित्य का पुनर्मूल्यांकन होगा ?
क्या गुलशन नंदा के पल्प साहित्य का पुनर्मूल्यांकन होगा ? लिखे हुए शब्द अगर आम जन तक पहुँच जाएँ और वो इसे सराहे तो यही उसके कालजयी होने का प्रमाण है . अंग्रेज़ी भाषा से ही पल्प लिटरेचर शब्द निकला है इसी की नक़ल पर घर घर तक पहुँचने वाले साहित्य को हिंदी में लुगदी साहित्य कह कर समीक्षकों द्वारा बहुत कुछ नकारा गया है जबकि यह साहित्य खूब बिकता रहा है, ख़ास बात यह है कि पश्चिमी देशों में बहुत सारा जो पल्प के रूप में निकला बाद में साहित्य की श्रेणी में स्वीकार कर लिया गया . हमारे यहाँ आज भी पल्प को नीची निगाह से देखा जाता है और उस पर बात करने वाले को बुद्धिजीवी श्रेणी से बाहर कर दिया जाता है. आज हम हिंदी रोमानी पल्प के बादशाह गुलशन नंदा की बात करने जा हैं जिन्होंने 60और 70के दशक में खूब जम कर लिखा .वे 1929 को आज के पाकिस्तान के शहर गुजरांवाला में जन्मे थे . अपने शुरुआती दिनों में वे दिल्ली के बल्लीमारान में एक चश्मे की दुकान पर नौकरी करते थे.किसी ने उनके द्वारा लिखे कुछ पन्ने देखे और उन्हें उपन्यास लिखने की सलाह दी और वे लेखन की ओर आ गए . एन.डी. ...