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Showing posts from January, 2019

Ek Ghazal Mitron Ke Liye - New Ghazal

इन दिनों कई लोग मित्रों सम्बोधन से डर जाते हैं , मैं तो इश्क और मोहब्बत के नाम से डर जाते हैं।  जब से मोहब्बत  हुई  है मित्रों  दिल की हालत अजीब है मित्रों  आँख से दूर क्या हुआ है वो  और दिल के करीब है मित्रों  अपनी  रातों में मस्त रहता हूँ  सुबह  अपनी रकीब है  मित्रों  इश्क  होता है जिंदगी में अक्सर  फिर भी  लगता अजीब है मित्रों  आशिकी का बयान कैसे करूँ  यह तो अपना नसीब  है मित्रों                                   -प्रदीप गुप्ता 

आइने में अक्स new ghazal

मेरी ख़ातिर तपिश से जल  गया कोई मैं  मैं नहीं रहा मुझ में  ढल गया कोई इस आइने में मेरा अक्स रहा करता था आज इसमें और ही सँवर   गया कोई हरेक हाथ का ख़ंजर मेरी तलाश में था कहीं से आके मेरी ढाल बन गया कोई मेरी आँखों से दरिया जो बहा इतना बहा उसमें भीग के पत्थर पिघल गया कोई मैं तो इसे महसूस करके सरूर में हूँ जिस्म से रूह तलक उतर गया कोई                                                     - प्रदीप गुप्ता 30.01.2019.मेरी ख़ातिर तपिश से जल  गया कोई मैं  मैं नहीं रहा मुझ में  ढल गया कोई इस आइने में मेरा अक्स रहा करता था आज इसमें और ही सँवर   गया कोई हरेक हाथ का ख़ंजर मेरी तलाश में था कहीं से आके मेरी ढाल बन गया कोई मेरी आँखों से दरिया जो बहा इतना बहा उसमें भीग के पत्थर पिघल गया कोई मैं तो इसे महसूस करके सरूर में हूँ जिस्म से रूह तलक उतर गया कोई             ...

Artificial Intelligence : Challenge of Human Development

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What is Artificial Intelligence ? Today we have all kinds of “smart” devices, many of which can even be activated by voice alone and offer intelligent responses to our queries. This kind of cutting-edge technology may make us consider Artificial Intelligence(AI) to be a product of the 21st century. But it actually has much earlier roots, going all the way back to the middle of the 20th century. The Roots SiFis have imagined AI much before anybody but the real credit goes to  Alan Turing of USA, his  ideas for computational thinking lay the foundation for AI.  Turing first presented the concept in a 1947 lecture. Certainly, it is something Turing thought about, for his written work includes a 1950 essay that explores the question, "Can Machines Think ?"  This is what gave rise to the famous  Turing Test. Even before that , in the year 1945, Vannevar Bush set out a vision of futuristic technology in an Atlantic Magazine article entitled " As W...

ज़रूरत है इन दिनों देश में उत्पादक इकाइयों के संवर्धन और प्रोत्साहन की : 10X Scale Up Conclave

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ज़रूरत है इन दिनों देश में उत्पादक इकाइयों के संवर्धन और प्रोत्साहन की : 10X Scale Up Conclave  बॉम्बे मैनेजमेंट एसोशिएशन ने आज 10X Scale Up Conclave   का आयोजन मुंबई में किया जिसमें चिंतकों , विचारकों और उद्योग जगत के शीर्ष नेताओं ने मिल कर उत्पादन उद्योग की समस्याओं को , चिंता , सरोकारों पर चर्चा की और उद्योग के आकार को दस गुना बढ़ाने के उपायों पर विचार किया . इस अवसर पर बोलते हुए एस एम ई चेम्बर आफ इंडिया के प्रेज़िडेंट चंद्र कांत सालुंखे ने कहा कि अगर देश के उत्पादन क्षेत्र को आगे बढ़ाना है तो एस एम ई इकाइयों को विशेष प्रो त्साहन देना होगा क्योंकि इस क्षेत्र में रोज़गार बढ़ाने की असीम सम्भावना हैं , सामन्यत : ऐसी   एक इकाई 50 लोगों को रिझाए प्रदान करते है . सालुंखे ने यह भी कहा कि उत्पादन क्षेत्र अपने वार्षिक वृद्धि लक्ष्य 45% की तुलना ...

Ode to Small Town मेरा क़स्बा

अब कसबे में नहीं बचा मेरा क़स्बा  याद बड़ी शिद्दत से आता मेरा कस्बा  जिसमें रौनक रहती अजब निराली थी  प्यार पगी लगती थी बुढ्ढों की गाली भी  गली गली के बड़े सभी ताऊ होते  थे  पास पडोसी लड़के अपने भाई होते थे  जहाँ कहीं ढोलक पे थापें लगती थीं  वहीँ रात को अपनी महफ़िल जमती थीं  हुक्का मेरे दादा जी का क्लब सरीखा था  झुण्ड बुजुर्गों का आ के वहीँ पे जमता था  दीपावली होली के रंग भले ही कच्चे थे  एक दूसरे से सब दिल से मिलते थे  ईद दशहरे में कोई भेद नहीं लगता था  सेवँई और जलेबी से दस्तरखान सजता था  पैसा कम था मगर जरुरत भी कम रहती थीं  जरा ज़रा सी  खुशियों में भी मस्ती रहती थी  धीरे धीरे कसबे पर बाज़ार हो गया हावी  मंहगे मंहगे सामानों से सज गईं दुकानें सारी  ले के लोन घरों में चमक दमक फिर आई  लेकिन जेबों पर हावी होने लगी ई एम् आई  भागा कसबा पैसे के पीछे जीवन जटिल हुआ  मस्ती और ख़ुशी का आलम धुआं  धुआं हुआ  कंचे,गिल्ली-डंडा अब तो...

A very romantic Ghazal मेरा नाम मिटा के फिर से

मेरा नाम मिटा के फिर से वापस लिखने लगते हो  क्या तुमको सम्बोधन दूँ मैं ना जाने क्या  लगते हो कभी सुरमई शाम कभी तो भोर सुबह की एक किरन  पल में तोला पल में माशा कैसे कैसे दिखते  हो  बरसों मरू सफर करने से क्षत विक्षत सी काया को  बीच घनेरे गेसू में तुम अमराई सी लगते हो  मैं तो जैसे  अन्य लोक की यात्रा करने लगता हूँ  तिनका बीच दांत में रख कर जब तुम हंसने  लगते हो वीणा के तारों पर जैसे  पदमाक्षि के स्वर जगते हैं  मुझको तो तुम स्वर लहरी की मूरत लगने लगते हो। ..                                                 -प्रदीप गुप्ता 

Taza Taza Ghazal यारों

अपनी जिद पे अड़ गए यारों  हम जमाने  से लड़  गए यारों  कभी सोचा है उन पत्तों का वजूद  वेवजह शाख से झाड़  गए यारों  दुनिया बदली बदली सी लगे है हमें  दो हरफ़ प्यार के पढ़  गए यारों हम जहाँ थे वहां  वहीं थे अभी  वो तो धोखे से बढ  गए यारों जिनको नाज़ों से पाला पोसा था     वो परिंदे तो  उड़ गए यारों                                       -प्रदीप गुप्ता 

Indian Diet Pattern Is Under Transformation

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I recently met Prof Ruth Defries from  Columbia University in USA. She has studied  changing  crop pattern and eating habits of Indian over the last many years. She compared nutritional and environmental outcomes access Indian cereals. India's  transition from a rice importing to an exporting country over the last fifty years is a remarkable achievement. The green revolution's success relied heavily on increased production of rice and wheat at the expense of lower-yielding traditional coarse cereals such as pearl millet (bajra), sorghum (jwar), finger millet (ragi). The Indian diet has consequently shifted away from coarse cereals. Our inter-disciplinary research combines long term agricultural and climate data sets with models to compare water demand, climate resilience, green house gas emissions and supply micro nutrients across the cereals. Results points towards beneficial environmental and nutritional outcome fro coarse cereals could help to alleviate India...