आइने में अक्स new ghazal
मेरी ख़ातिर तपिश से जल गया कोई
मैं मैं नहीं रहा मुझ में ढल गया कोई
इस आइने में मेरा अक्स रहा करता था
आज इसमें और ही सँवर गया कोई
हरेक हाथ का ख़ंजर मेरी तलाश में था
कहीं से आके मेरी ढाल बन गया कोई
मेरी आँखों से दरिया जो बहा इतना बहा
उसमें भीग के पत्थर पिघल गया कोई
मैं तो इसे महसूस करके सरूर में हूँ
जिस्म से रूह तलक उतर गया कोई
- प्रदीप गुप्ता
30.01.2019.मेरी ख़ातिर तपिश से जल गया कोई
मैं मैं नहीं रहा मुझ में ढल गया कोई
इस आइने में मेरा अक्स रहा करता था
आज इसमें और ही सँवर गया कोई
हरेक हाथ का ख़ंजर मेरी तलाश में था
कहीं से आके मेरी ढाल बन गया कोई
मेरी आँखों से दरिया जो बहा इतना बहा
उसमें भीग के पत्थर पिघल गया कोई
मैं तो इसे महसूस करके सरूर में हूँ
जिस्म से रूह तलक उतर गया कोई
- प्रदीप गुप्ता
30.01.2019.
मैं मैं नहीं रहा मुझ में ढल गया कोई
इस आइने में मेरा अक्स रहा करता था
आज इसमें और ही सँवर गया कोई
हरेक हाथ का ख़ंजर मेरी तलाश में था
कहीं से आके मेरी ढाल बन गया कोई
मेरी आँखों से दरिया जो बहा इतना बहा
उसमें भीग के पत्थर पिघल गया कोई
मैं तो इसे महसूस करके सरूर में हूँ
जिस्म से रूह तलक उतर गया कोई
- प्रदीप गुप्ता
30.01.2019.मेरी ख़ातिर तपिश से जल गया कोई
मैं मैं नहीं रहा मुझ में ढल गया कोई
इस आइने में मेरा अक्स रहा करता था
आज इसमें और ही सँवर गया कोई
हरेक हाथ का ख़ंजर मेरी तलाश में था
कहीं से आके मेरी ढाल बन गया कोई
मेरी आँखों से दरिया जो बहा इतना बहा
उसमें भीग के पत्थर पिघल गया कोई
मैं तो इसे महसूस करके सरूर में हूँ
जिस्म से रूह तलक उतर गया कोई
- प्रदीप गुप्ता
30.01.2019.
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