A very romantic Ghazal मेरा नाम मिटा के फिर से
मेरा नाम मिटा के फिर से वापस लिखने लगते हो
क्या तुमको सम्बोधन दूँ मैं ना जाने क्या लगते हो
कभी सुरमई शाम कभी तो भोर सुबह की एक किरन
पल में तोला पल में माशा कैसे कैसे दिखते हो
बरसों मरू सफर करने से क्षत विक्षत सी काया को
बीच घनेरे गेसू में तुम अमराई सी लगते हो
मैं तो जैसे अन्य लोक की यात्रा करने लगता हूँ
तिनका बीच दांत में रख कर जब तुम हंसने लगते हो
वीणा के तारों पर जैसे पदमाक्षि के स्वर जगते हैं
मुझको तो तुम स्वर लहरी की मूरत लगने लगते हो। ..
-प्रदीप गुप्ता
क्या तुमको सम्बोधन दूँ मैं ना जाने क्या लगते हो
कभी सुरमई शाम कभी तो भोर सुबह की एक किरन
पल में तोला पल में माशा कैसे कैसे दिखते हो
बरसों मरू सफर करने से क्षत विक्षत सी काया को
बीच घनेरे गेसू में तुम अमराई सी लगते हो
मैं तो जैसे अन्य लोक की यात्रा करने लगता हूँ
तिनका बीच दांत में रख कर जब तुम हंसने लगते हो
वीणा के तारों पर जैसे पदमाक्षि के स्वर जगते हैं
मुझको तो तुम स्वर लहरी की मूरत लगने लगते हो। ..
-प्रदीप गुप्ता
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