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Showing posts from December, 2019

Hindi Poetry : मुझे बार बार कहा जाता है देश से प्यार करो

मुझे बार बार कहा जाता है देश से प्यार करो मुझे बार बार कहा जाता है देश से प्यार करो पहले मुझे यह बताओ यह देश क्या है ? देश दुनिया के ग्लोब में मुद्रित स्थान है ? या फिर किसी भूगोल की किताब में छपा नक़्शा है ? नहीं मित्र , देश वही है जिस के लिए फ़ौज का सिपाही अपनी या अपने परिवार की परवाह किए बिना जान उत्सर्ग कर देता है देश वही है जिसके लिए किसान पूरे साल आँधी , लू या फिर बर्फीली हवाओं में खड़े हो कर उगता है फसलें देश वही है जिसके लिए मज़दूर सुबह से शाम तक बोझ उठा कर बनता है पुल, सड़कें , भवन देश वही है जिसके लिए वैज्ञानिक और शोधकर्ता खोजते हैं ऐसे उपाय जिससे आम आदमी की ज़िंदगी हो सके बेहतर तो ऐसे देश को प्यार करने के लिए पहले अपने आप से प्यार करो अपने परिवार को प्यार करो अपने आस पास के लोगों से प्यार करो अपने आस पड़ोस को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करो अपने नेता को आगाह करते रहो वह तुम्हारा सेवक है नियंता नहीं फिर तुम्हारा देश खुद संवर जाएगा तुम्हें पहले से कहीं बेहतर लगने लगेगा. देश से प्यार करने के लिए किसी उपदेश या भाषण की ज़रूरत नहीं है .       ...

Hindi Poetry : नई पोथी गढ़ो

नई पोथी गढ़ो तुम्हारी पोथियाँ बड़ी बड़ी बातों से भरी पड़ी हैं पर तुम्हारे साथ बड़ी परेशानी यह है तुम इन पोथियों को अपने पूजा  गृह में रेशम या फिर मलमल के कपड़े  में लपेट कर रख देते हो रोज़ उसके सामने लोबान जला देते हो या फिर थाली में धूप दीप नैवेद्य सजा  कर उसकी आरती उतार् देते हो कभी उसे पढ़ कर उसका अर्थ नहीं समझते हाँ , उसका नाम लेकर तलवार भांजते रहते हो क्या तुम्हें पता है यह पोथी को लेकर हिंसा कितने हज़ार सालों से जारी है इस हिंसा के पीछे एक ही सोच है मेरी वाली तेरी वाली से बेहतर है ! कब कोई पोथी एक व्यक्ति को भीड़ तंत्र का हिस्सा बना दे और अपनी कसौटी पर तर्क को भोथरा कर दे सही सही बताया नहीं जा सकता है विज्ञान , तकनीक और सोच ने पोथियों पर निर्भरता  को कम किया ज़रूर है पर हैरानी इस बात की होती है कि तर्क  पोथियों के सामने बौना लगने लगता है क्या आपको नहीं लगता कि अब समय आ गया है जब एक ऐसी पोथी गढ़ी जाए जिसमें मानव को केवल मानव कहा और समझा ज़ाए पोथी के नाम पर होने वाली  हिंसा और नफ़रत को अलविदा कह दिया जाए.

Hindi Poetry : तुम मानसिक नपुंसक हो .

बलात्कारी , तुम मानसिक नपुंसक हो . तुम्हारे मन में किसी स्त्री के प्रति कोई कोमल भावना नहीं जागती उसे देख कर तुम्हारे मन में बैठा वहशी जाग जाता है जिसका मक़सद सिर्फ़ और सिर्फ़ भोग है उसे शक्ति देती है तुम्हारी राजनीतिक, सामाजिक हैसियत और सदियों से से चली आ रही लिजलिजी जातीय श्रेष्टता. इसी लिए तुम्हारी हथेलियाँ नारी के शरीर का स्पर्श करके संगीत महसूस नहीं करती हैं न ही उसके होठों को स्पर्श करके तुम्हारे  होंठ में चेतना जागती है बस तुम्हारा निचला बदन अकेली स्त्री को देख कर तुम्हें दरिंदा बना देता है उसे किसी नान-वेज डिश की तरह चूस चूस कर चबा जाना चाहते हो क्योंकि तुम भावनाहीन मानसिक नपुंसक हो पुरुष बिरादरी के लिए कलंक तो हो ही साथ ही उस माँ के लिए श्राप हो जिसने तुम्हें नौ माह तक गर्भ में रखा था और कई महीनों तक स्तनपान कराया था वैसे भी एक बलात्कारी के लिए माँ , बहन , बेटी या फिर पत्नी में फ़रक ही क्या है ?              -प्रदीप गुप्ता

Hindi Poetry : समय शिला पर अंकित हैं सारे अनुबंध

समय   शिला   पर   अंकित   हैं   सारे   अनुबंध   चलते   चलते   साथ   सफ़र   में   सयाने   हो   चले   सम्बंध   समय   शिला   पर   अंकित   हो   गए   अनगिनत   अनुबंध   इस   सब   के   बीच   कहीं   पर   विदा   ले   रही   है   तरुणाई   चाँदी   के   तारों   से   गछ   गई   केश   राशि   की   परछाई   समय   बहुत   बलशाली   है   और   साथ   ही   निष्ठुर   भी   जीने   की   इच्छा     के   आगे   नतमस्तक   हो   जाता   फिर   भी   इसी   लिए   पतवार   न   छोड़ो   कस   के   थामो   नौका   को   संकल्पों     का   बल   झुक़ा   देता   है   अच्छे   अच्छे   योद्धा   को   रेत...

Hindi Kavita : मैं खौफजदा हो चला हूँ

मैं खौफजदा हो चला हूँ दरअसल  अब मेरी  आंखें मुझे वही दिखती हैं जो मैँ  देखना चाहता हूँ मेरे कान वही सुनते हैं जो मैं सुनना चाहता हूँ इस लिए मेरी आंखें हकीकत नहीं देख सकती हैं मेरे कानों में चीख , पुकार और हताशा के स्वर नहीं पहुँच पाते हैं यही नहीं अब मेरे हाथ प्रार्थना के लिए नहीं उठते बस सीधा हाथ ही उठता है वह भी आशीर्वचन के लिए उन सभी के लिए जो आँख बंद करके मेरे पीछे पीछे चलते हैं जिव्हा का नियंत्रण भी अब कमजोर पड़  गया है जहाँ इसे बोलना चाहिए वहां नहीं बोल पति है जहाँ इसे नहीं बोलना चाहिए बोलती है तो बोलती ही जाती है डऱ पत्नी यह सब देख कर हैरान और परेशान है लेकिन मेरे व्यक्तित्व से डर कर बोल नहीं पाती है इस बीच एक बात बताना भूल रहा हूँ टांगों  पर भी नियंत्रण खोता जा रहा हूँ जब मुझे मेरे परिवार के लोग अपने दुःख दर्द सुनाना चाहते हैं मुझे उनके पास वैठना चाहिए मेरे टाँगे शरीर को तेजी से दरवाजे से बाहर निकाल करले जाती हैं इतनी दूर कि मैं उनकी बात सुन ही न पाऊं अब आप ही बताइए मुझे अपने आप से डरना चाहिए या नहीं।