Hindi Poetry : तुम मानसिक नपुंसक हो .

बलात्कारी , तुम मानसिक नपुंसक हो .

तुम्हारे मन में किसी स्त्री के प्रति कोई कोमल भावना नहीं जागती
उसे देख कर तुम्हारे मन में बैठा वहशी जाग जाता है
जिसका मक़सद सिर्फ़ और सिर्फ़ भोग है
उसे शक्ति देती है तुम्हारी राजनीतिक, सामाजिक हैसियत
और सदियों से से चली आ रही लिजलिजी जातीय श्रेष्टता.
इसी लिए
तुम्हारी हथेलियाँ नारी के शरीर का स्पर्श करके संगीत महसूस नहीं करती हैं
न ही उसके होठों को स्पर्श करके तुम्हारे  होंठ में चेतना जागती है
बस तुम्हारा निचला बदन अकेली स्त्री को देख कर तुम्हें दरिंदा बना देता है
उसे किसी नान-वेज डिश की तरह चूस चूस कर चबा जाना चाहते हो
क्योंकि तुम भावनाहीन मानसिक नपुंसक हो
पुरुष बिरादरी के लिए कलंक तो हो ही
साथ ही उस माँ के लिए श्राप हो
जिसने तुम्हें नौ माह तक गर्भ में रखा था
और कई महीनों तक स्तनपान कराया था
वैसे भी एक बलात्कारी के लिए माँ , बहन , बेटी या फिर पत्नी
में फ़रक ही क्या है ?
             -प्रदीप गुप्ता

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