Hindi Poetry : नई पोथी गढ़ो

नई पोथी गढ़ो
तुम्हारी पोथियाँ बड़ी बड़ी बातों से भरी पड़ी हैं
पर तुम्हारे साथ बड़ी परेशानी यह है
तुम इन पोथियों को अपने पूजा  गृह में
रेशम या फिर मलमल के कपड़े  में लपेट कर रख देते हो
रोज़ उसके सामने लोबान जला देते हो
या फिर थाली में धूप दीप नैवेद्य सजा  कर उसकी आरती उतार् देते हो
कभी उसे पढ़ कर उसका अर्थ नहीं समझते
हाँ , उसका नाम लेकर तलवार भांजते रहते हो
क्या तुम्हें पता है यह पोथी को लेकर हिंसा कितने हज़ार सालों से जारी है
इस हिंसा के पीछे एक ही सोच है
मेरी वाली तेरी वाली से बेहतर है !
कब कोई पोथी एक व्यक्ति को भीड़ तंत्र का हिस्सा बना दे
और अपनी कसौटी पर तर्क को भोथरा कर दे
सही सही बताया नहीं जा सकता है
विज्ञान , तकनीक और सोच ने पोथियों पर निर्भरता  को कम किया ज़रूर है
पर हैरानी इस बात की होती है कि तर्क  पोथियों के सामने
बौना लगने लगता है
क्या आपको नहीं लगता कि अब समय आ गया है
जब एक ऐसी पोथी गढ़ी जाए
जिसमें मानव को केवल मानव कहा और समझा ज़ाए
पोथी के नाम पर होने वाली  हिंसा और नफ़रत को अलविदा कह दिया जाए.

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