Hindi Kavita : मैं खौफजदा हो चला हूँ
मैं खौफजदा हो चला हूँ
दरअसल अब मेरी आंखें मुझे वही दिखती हैं
जो मैँ देखना चाहता हूँ
मेरे कान वही सुनते हैं
जो मैं सुनना चाहता हूँ
इस लिए मेरी आंखें हकीकत नहीं देख सकती हैं
मेरे कानों में चीख , पुकार और हताशा के स्वर नहीं पहुँच पाते हैं
यही नहीं अब मेरे हाथ प्रार्थना के लिए नहीं उठते
बस सीधा हाथ ही उठता है
वह भी आशीर्वचन के लिए
उन सभी के लिए जो आँख बंद करके मेरे पीछे पीछे चलते हैं
जिव्हा का नियंत्रण भी अब कमजोर पड़ गया है
जहाँ इसे बोलना चाहिए वहां नहीं बोल पति है
जहाँ इसे नहीं बोलना चाहिए बोलती है तो बोलती ही जाती है डऱ
पत्नी यह सब देख कर हैरान और परेशान है
लेकिन मेरे व्यक्तित्व से डर कर बोल नहीं पाती है
इस बीच एक बात बताना भूल रहा हूँ
टांगों पर भी नियंत्रण खोता जा रहा हूँ
जब मुझे मेरे परिवार के लोग
अपने दुःख दर्द सुनाना चाहते हैं
मुझे उनके पास वैठना चाहिए
मेरे टाँगे शरीर को तेजी से दरवाजे से बाहर निकाल करले जाती हैं
इतनी दूर कि मैं उनकी बात सुन ही न पाऊं
अब आप ही बताइए
मुझे अपने आप से डरना चाहिए या नहीं।
दरअसल अब मेरी आंखें मुझे वही दिखती हैं
जो मैँ देखना चाहता हूँ
मेरे कान वही सुनते हैं
जो मैं सुनना चाहता हूँ
इस लिए मेरी आंखें हकीकत नहीं देख सकती हैं
मेरे कानों में चीख , पुकार और हताशा के स्वर नहीं पहुँच पाते हैं
यही नहीं अब मेरे हाथ प्रार्थना के लिए नहीं उठते
बस सीधा हाथ ही उठता है
वह भी आशीर्वचन के लिए
उन सभी के लिए जो आँख बंद करके मेरे पीछे पीछे चलते हैं
जिव्हा का नियंत्रण भी अब कमजोर पड़ गया है
जहाँ इसे बोलना चाहिए वहां नहीं बोल पति है
जहाँ इसे नहीं बोलना चाहिए बोलती है तो बोलती ही जाती है डऱ
पत्नी यह सब देख कर हैरान और परेशान है
लेकिन मेरे व्यक्तित्व से डर कर बोल नहीं पाती है
इस बीच एक बात बताना भूल रहा हूँ
टांगों पर भी नियंत्रण खोता जा रहा हूँ
जब मुझे मेरे परिवार के लोग
अपने दुःख दर्द सुनाना चाहते हैं
मुझे उनके पास वैठना चाहिए
मेरे टाँगे शरीर को तेजी से दरवाजे से बाहर निकाल करले जाती हैं
इतनी दूर कि मैं उनकी बात सुन ही न पाऊं
अब आप ही बताइए
मुझे अपने आप से डरना चाहिए या नहीं।
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