वारली कला शैली में बदलाव की लहर
वारली कला शैली में बदलाव की लहर वारली कला शैली के बारे में पहली बार मैंने महाराष्ट्र पर्यटन के विज्ञापन में पढ़ा था। इस शैली में नृत्य करती, शिकार करती और खेती बाड़ी करती छोटी छोटी मानवीय आकृतियों ने मुझे आकर्षित किया। भूरी पृष्टभूमि में यह सफ़ेद आकृतियां सीधे ग्रामीण परिवेश में ले गयीं . उत्सुकता बढ़ी तो गूगल पर छानबीन की , पता चला कि इस कला शैली का उद्गम दहाणु के आस पास कहीं है. अब तक तो मैं दहाणु को चीकू नगरी। के रूप में ही जनता था. मैंने फैसला किया कि इस इलाके की यात्रा की जाय और इस अनन्य लोक कला के बारे में खोज निकला जाय। मेरे चित्रकार मित्र सुजीत पोद्दार इस यात्रा में मेरे साथ बने रहे. The way traditionally women folk used to draw on the wall दहाणु मुंबई से केवल १३५ कि मी की दूरी पर है , चर्च गेट से यहाँ तक के लिए अब सीधी तेज लोकल मिलती है. इस यात्रा में जैसे ही विरार पार किया आगे दूर दूर तक कहीं आबादी दिखाई नहीं देती है , जिधर नजर घुमाओ पहाड़ियां और हरियाली ही नज़र आती है, हाँ अगर पालघर को छोड़ दें तो कह...