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Showing posts from July, 2011

ghazal

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किनारे बैठ के दरिया मजा क्या आये बीच धारा में जरा कूद के देखा जाये आज हालत हुए बाद से बदतर क्यों हुए ऐसे यह सोचा जाये इनके बस्ते का वजन तोल के देखो यारों कुछ किताबों को जरा इनसे हटाया जाये जिन को सौपा था अपनी हिफाजत का जिम्मा वो अगर गाफिल तो उनको हटाया जय क्यों बने जा रहे बागी हमारे अपने इस नजरिये से बगावत को भी देखा जाये उनकी कोशिश है सच को बनावट से छुपाया जाय अपनी भी जिद है उन्हें आइना दिखाया जाय

ghazal on Terrorists

जब भी जी चाहे कोई वारदात करते हो आ के दबे पांव पीछे से वार करते हो तुम तो कायर हो निह्थों का लहू पीते हो किस धरम दीन की की बात करते हो

nayee ghazal ke chand sher

बबूल के पेड़ हैं फिर आम किस तरह पायें जो बो चुके हैं फसल तो उसी की पायें कहाँ पहुचना है पहले से तय किया होता यह तो चौराहा है सड़कें जगह जगह जाएँ कुछ भी तो नहीं बदला हम वहीं पर हैं पहले बाएं थे फिर चले दायें

ghazal

आज फिर झूम के बरसा पानी छू के धरती का बदन बहका पानी बाद अरसे के मिला कल वो मुझको होंठ खामोश रहे आँख से छलका पानी लोग कुछ इस तरह से जिन्दा हैं बाद बरसात के तालाब का ठहरा पानी जिस तरह कट रहे जंगलों को तुम मिल कर कैसे बच पायेगा झील का उजला पानी मेरी कोशिश थी कि तैर के देखूं तेरी आँख की गहराई में गुम गया वहां निकला सागर से भी गहरा पानी ---- प्रदीप गुप्ता

ghazal

जिगर में हौसला हो तो सारा जहाँ अपना है जमीन अपनी है यह आसमां अपना है शिकायत किस से करू अपना मकान लुटने की रहजन मुंसिफ ही नहीं सारा निजाम इनका है दिलों को जोडके खुशिया ला सके वापस फ़रिश्ते मिल सकें ऐसा मेरा सपना है रहमतें वरसी इस बार मेरे घर के आगे दमन खाली रहा कसूर अपना है - PRADEEP GUPTA

ghazal

बहार बेरंग हुई चमन की बात कौन करे सदी तो लुट चुकी वतन कि बात कौन करे अपने बेटे हैं बहुएं हैं और बीवी हैं फिर इलेक्शन में अन्ना की बात कौन करे रोज मरता है और मरके जीता है इस गली के कल्लू की बात कौन करे दोस्तों यह कोठरी है काजल की उजले चेहरों की बात कौन करे सिलसिला भीख से मुफलिसी मिटाने का फिर जतन और कारसाजी कौन करे - PRADEEP GUPTA
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आज का शेर आज फिर झूम के बरसा पानी छूके धरती का बदन मचला पानी -PRADEEP GUPTA

आज का शेर

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आज का शेर बहार उठने पर चमन की बात कौन करे सदी तो लुट चुकी वतन की बात कौन करे -PRADEEP GUPTA

ghazal : आदमी

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इस सफ़र में थक गया जो आदमी मुझ को तो तन्हा लगे वो आदमी एक सच भूला लगे है बार बार आदमी से आदमी तक राब्ता है आदमी कितनी कोशिश चल रही हैं तरक्की के लिए पर खास मुद्दों से लापता है आदमी किस अजानी सी डगर पर गुम गया है सिर्फ मंजिल ही नहीं है रास्ता भी आदमी राजा रानी की कहानी ही नहीं है हिस्टरी एक युग से दूसरे तक जी रहा है आदमी -PRADEEP GUPTA

taza ghazal

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आज भी थमती सी है मेरी साँस तेरे आगे मेरा वजूद पिघलता क्यों है तेरे आगे बाद मुद्दत के तेरे ख्याल से मिल पाया हूँ और घिर आया है यादों का हुजूम मेरे आगे आज बारिश की झड़ी क्या खूब लगी है देखो गम का समंदर तो रोज़ बरसता है मेरे आगे चूमता हूँ तो खाभी आगोश में भर लेता हूँ तेरा एहसास जो रहता है मेरे आगे _PRADEEP GUPTA