ghazal

आज फिर झूम के बरसा पानी
छू के धरती का बदन बहका पानी

बाद अरसे के मिला कल वो मुझको
होंठ खामोश रहे आँख से छलका पानी

लोग कुछ इस तरह से जिन्दा हैं
बाद बरसात के तालाब का ठहरा पानी

जिस तरह कट रहे जंगलों को तुम मिल कर
कैसे बच पायेगा झील का उजला पानी

मेरी कोशिश थी कि तैर के देखूं तेरी आँख की गहराई में
गुम गया वहां निकला सागर से भी गहरा पानी

---- प्रदीप गुप्ता

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