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Showing posts from February, 2022

युद्ध War

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युद्ध   आज   मैं   वेस्ट   मिनिस्टर   संसद   के   भीतर   ठीक   विंस्टन   चर्चिल   के   बुत   के   सामने   खड़ा   हूँ   बुत   के   चेहरे   पर   अतिशय   क्रोध   के   भाव   मूर्तिकार   ने   ज्यों   के   त्यों   उकेर   दिए   हैं  .  जिस   दिन   नाज़ी   विमान   ने   ब्रिटिश   संसद   के   डोम   पर   बम   गिराया   था  , चर्चिल   ने   ठान   लिया   था   इस   युद्ध   में   नाज़ी   हुकूमत   को   नेस्तनाबूद   करके   छोड़ेंगे   फिर   चर्चिल   ने   देश   की   सम्पदा ,  अपने   उपनिवेशों   के   फ़ौजी   और   संसाधन   तक   सब   झोंक   दिए   थे  . जीत   मिली   किस   क़ीमत   पर   फ़ौजियों   की ...

सोचता हूँ

सोचता   हूँ     इधर   सोचता   हूँ   न   उधर   सोचता   हूँ   ज़िंदगी   हर   वक्त   मैं   तुझे   सोचता   हूँ   मेरी   ज़िंदगी   का   टॉनिक     है   वो   ये   कैसे   बता   दूँ   उसे   सोचता   हूँ   मसाइल     हैं   वो   सब   मिरी   ज़िंदगी   के   ग़लत   क्या     अगर   मैं   उन्हें   सोचता   हूँ   उन   को   शिकायत   है   मुझ   से   बहुत   हर   वक्त   मैं   इतना   क्यों     सोचता   हूँ   आदमी   हूँ   इस   वजह   लाज़िम   है   यह   सोच   कर   मैं   वापस   फिर   सोचता   हूँ   मोहब्बत   में   हासिल   हुआ   क्या   मुझे   सब   कुछ   लुटा   के   मैं   ये   सोचता ...

रास्ता ग़र मंजिल बन जाए Hindi Poetry

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रास्ता   ग़र   मंजिल    बन   जाए   जीवन   की   आपाधापी   में   जोड़   घटाना   और   बाक़ी   में   जटिल   तंत्र   की   आभासी   में   सपनों   की   ताकाझाकीं   में   रस्ता   ग़र   मंज़िल   बन   जाए   जीवन   बहुत   सरल   बन   जाए   अगर   पेट   में   भूख   हो   साथी   रोटी ,  चटनी  , प्याज   है   काफ़ी   नहीं   ज़रूरी   ट्रंक   भरे   हों   दो   जोड़ी   कपड़े     हैं   काफ़ी   सही   सोच   सम्बल   बन   जाए   जीवन   बहुत   सरल   बन   जाए   समय   जरा   विपरीत   खड़ा   हो   इच्छाओं   का   पेट   बड़ा   हो   दर्प   दंश   से   गिरा   पड़ा   हो   और   अरि   भी   उधर   अड़ा  ...

मैजिक मुरादाबादी मूँग की दाल का

मुरादाबादी दाल के इश्क़ में                 -प्रदीप गुप्ता  आज मेरे एक अज़ीज़ ने शरद जोशी द्वारा इंदौरी पोहे के सम्मान में लिखा आलेख साझा किया है . जब मैंने इसे दो तीन मर्तबा पढ़ा तो लगा कि इंदौरियों की पोहे से मोहब्बत मुरादाबादियों  की मूँग की दाल के इश्क़ के सामने कुछ भी नहीं है . किसी भी दूसरे शहर के बाशिंदों से पूछ कर देखिए सभी दालों में उसे मूँग की दाल सबसे घटिया लगती है . उनके हिसाब से मूँग की दाल हकीम वैद्यों द्वारा बीमारी-हारी में पथ्य के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली चीज़  है . यह गम्भीर शोध का विषय है कि प्लेन जेन मूँग की दाल कैसे मुरादाबाद के लोगों की सबसे पसंदीदा डिश बन गयी है . मेरा विचार है इस खोजबीन के लिए  एम फ़िल या पी एच डी ही नहीं डी लिट तक के स्तर की शोध कम पड़ सकती है .  दीवानगी की हद यह है कि मुरादाबादी व्यक्ति भले ही किसे भी जात या धर्म का हो सुबह सबेरे मुँह पर पानी चुपड़ कर कुल्ला दातून करके सीधे मूँग की दाल के ठेले की तरफ़ रवाना हो जाता है . कोई भी सामाजिक भोज , कोई भी गेट टुगेदर मूँग की दाल क...

Sambandh. सम्बंध - ग़ज़ल

Sambandh  ग़ज़ल  -  संबंध   मुझको   लगता   था   सम्बंध   हमारा   काल   खंड   में   सिमट   गया    लेकिन   अब   के   मौसम   में   ज़ख़्म   पुराना   हरा   हुआ   ऐसा   नहीं   कि   मेरे   ग़म   तब   औरों   से   कुछ   जुदा   हुआ   करते   थे    क़िस्से   कुछ   जो   सुने   तो   पाया   सबका     दिल   है   दुखा   हुआ   आईना   मैं     जब   भी   देखूँ     ,    कितने   चेहरे     दिख   जाते   हैं   हैरान   हूँ   मैं   मिरा   आईना   किन   यादों   से   है   घिरा   हुआ   वो   सब   से   मिलता   है   खुल   के     बस   मेरी     तहक़ीर  *  करे   बच्चे   का ...