रास्ता ग़र मंजिल बन जाए Hindi Poetry
रास्ता ग़र
मंजिल बन जाए
जीवन की आपाधापी में
जोड़ घटाना और बाक़ी में
जटिल तंत्र की आभासी में
सपनों की ताकाझाकीं में
रस्ता ग़र मंज़िल बन जाए
जीवन बहुत सरल बन जाए
अगर पेट में भूख हो साथी
रोटी, चटनी ,प्याज है काफ़ी
नहीं ज़रूरी ट्रंक भरे हों
दो जोड़ी कपड़े हैं काफ़ी
सही सोच सम्बल बन जाए
जीवन बहुत सरल बन जाए
समय जरा विपरीत खड़ा हो
इच्छाओं का पेट बड़ा हो
दर्प दंश से गिरा पड़ा हो
और अरि भी उधर अड़ा हो
इनसे अगर रार ठन जाए
जीवन बहुत सरल बन जाए
इनसे अगर रार ठन जाए
जीवन बहुत सरल बन जाए
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