मैजिक मुरादाबादी मूँग की दाल का

मुरादाबादी दाल के इश्क़ में 
               -प्रदीप गुप्ता 
आज मेरे एक अज़ीज़ ने शरद जोशी द्वारा इंदौरी पोहे के सम्मान में लिखा आलेख साझा किया है . जब मैंने इसे दो तीन मर्तबा पढ़ा तो लगा कि इंदौरियों की पोहे से मोहब्बत मुरादाबादियों  की मूँग की दाल के इश्क़ के सामने कुछ भी नहीं है .
किसी भी दूसरे शहर के बाशिंदों से पूछ कर देखिए सभी दालों में उसे मूँग की दाल सबसे घटिया लगती है . उनके हिसाब से मूँग की दाल हकीम वैद्यों द्वारा बीमारी-हारी में पथ्य के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली चीज़  है . यह गम्भीर शोध का विषय है कि प्लेन जेन मूँग की दाल कैसे मुरादाबाद के लोगों की सबसे पसंदीदा डिश बन गयी है . मेरा विचार है इस खोजबीन के लिए  एम फ़िल या पी एच डी ही नहीं डी लिट तक के स्तर की शोध कम पड़ सकती है . 
दीवानगी की हद यह है कि मुरादाबादी व्यक्ति भले ही किसे भी जात या धर्म का हो सुबह सबेरे मुँह पर पानी चुपड़ कर कुल्ला दातून करके सीधे मूँग की दाल के ठेले की तरफ़ रवाना हो जाता है . कोई भी सामाजिक भोज , कोई भी गेट टुगेदर मूँग की दाल के काउंटर के बग़ैर अधूरा समझा जाता है . यहाँ तक कि शादी ब्याह की दावत भी मूँग की दाल का स्टाल ज़रूर मिलेगा  . सप्तपदी की वेदी पर वर वधू से फेरों की क्रिया विधि प्रारम्भ करने से पहले पंडित हस्त प्रक्षालन करना ज़रूरी समझते हैं , कोई आश्चर्य नहीं कि इन पूरी संस्कार  विधि से पहले मुरादाबाद के पंडित जी यह भी पुष्टि कर लेते हों कि वर वधू ने आज मूँग की दाल खाई है या नहीं . शहर में इतने तो मोबाइल टावर या उसके बूस्टर नहीं नहीं हैं जितने मूँग की दाल के ठेले . सच तो यह है की भले ही इस शहर में गली या सड़क के नुक्कड़ कई दिनों से साफ़ हुए हों या नहीं लेकिन वहाँ पर मूँग  की दाल का कम से कम एक खोमचा या स्टाल अनिवार्य रूप से होगा और हर समय गुलज़ार रहेगा. 
एक बात और , मुरादाबाद के घरों में आज भी भले ही घर में कई समाचार पत्र आते हों , समाचार चैनल हर समय खुले रहते हों , लेकिन समाचार के संवाद का प्रामाणिक प्लेटफ़ार्म मूँग की दाल का ठेला ही है , देश दुनिया के किसी भी समाचार की पुष्टि तब तक नहीं होती जब तक कि ठेले के इर्द गिर्द खड़े लोग अपनी बारी आने तक चर्चा न कर लें . 
आप यह पूछेंगे कि बार बार मूँग की दाल के ठेले का ज़िक्र क्यों आ रहा है , दरअसल मूँग की दाल नाश्ते के आइटम के रूप में घर में भी बनती रहती है लेकिन संतुष्टि ठेले की दाल खा कर ही क्यों होती है .
आख़िर ठेले पर बिकने वाली दाल इतनी लोक प्रिय क्यों है यह जानने के लिए एक बार आपको मुरादाबाद शहर में आना पड़ेगा , इसके इतने वेरीएशन और वैराइटी है कि देख कर दिमाग़ चकरा जाए . खोमचे पर एक बड़ी पीतल की परात में दाल रहती है , उसके नीचे कोयले की हल्की हल्की आँच , और मूँग की दाल घंटों आराम से सुंदकती रहती है . कुछ लोग उसकी खुरचन के दीवाने हैं तो कुछ पतली अवस्था के तो कुछ दरमियानी के . इस विशिष्ट व्यंजन के लिए मसाले रोज़ सुबह सबेरे कूट कर भूने जाते हैं . मसलों में लवंग . बड़ी इलायची , जीरा काली मिर्च , जायफल से लेकर न जाने कितने और कई  गोपनीय मसाले शामिल रहते हैं . दाल में असली स्वाद मसालों के सही मिश्रण और एक ख़ास क़िस्म से कूटने में आता है . दाल के ज़बरदस्त स्वाद का एक और रहस्य उसे टॉप-अप करने से भी है , अमूल बटर का तड़का , कसा हुआ काटेज पनीर , नींबू , धनिए की चटनी , मीठी सौंठ, कसी हुई मूली का लच्छा ग़ज़ब का स्वाद आ जाता है . मंडी चौक , सराफा, गंज बाज़ार , डिप्टी गंज ही नहीं नई नवेली कालोनियों में हर एक ठेले की अपनी विशिष्टता है जो कई कई किलोमीटर दूर से लोगों को खींच कर ले आती है . कई मूँग की दाल के ठेले मिठाई की दुकान के पास खड़े होते हैं , उनकी बिक्री जरा ज़्यादा  होती है क्योंकि बहुत सारे दाल प्रेमी दाल के पत्ते में देसी घी की गरमा-गर्म जलेबी डाल कर खाना पसंद करते हैं , कुछ दही एक दम गाढ़ा दही का थक्का डलवा कर अपने मूँग की दाल के पत्ते को स्वाद के ज़रा और ऊँचे स्तर पर ले जाते हैं . 
लंदन  के लोगों के बारे में मशहूर है कि जब भी वे एक दूसरे से मिलते हैं तो बातचीत की शुरुआत मौसम से होती है , हमारे शहर मुरादाबाद की खूबी है कि यहाँ के लोग बातचीत की शुरुआत मूँग  की दाल से होती है और कई बार तो बातचीत का  समापन भी इसी से होता है . बाहर से आए हुए व्यक्ति को शुरू शुरू में यह सब बहुत ही अजीबोग़रीब लगता है लेकिन अगर वह कुछ हफ़्ते रह लिया तो वह भी इसी रंग ढंग में रंग जाता है . 
आजकल लोगों को राजनीतिक विमर्श का स्तर बहुत गिरा गिरा सा लगने लगा है , लेकिन जो लोग मुरादाबादी दाल के ठेले पर खड़े हो कर राजनीतिक संवाद करते हैं अगर उसे आप सुन लें तो आपकी इच्छा प्रबल हो जाएगी कि नेताओं के घर के बाहर  भी मुरादाबादी दाल का ठेला लगवा दिया जाए तो उनके विमर्श में थोड़ा स्तर बढ़ा हुआ दिखाई देगा . अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर के कूटनीतिक सम्मेलनों के साथ होने वाले बैंक्वेट में अन्य आइटम के साथ मुरादाबादी दाल भी शामिल कर ली जाए तो विवाद बड़े सार्थक तरीक़े से निपट जाएँगे.

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