Sambandh. सम्बंध - ग़ज़ल
Sambandh
ग़ज़ल - संबंध
मुझको लगता था सम्बंध हमारा काल खंड में सिमट गया
लेकिन अब के मौसम में ज़ख़्म पुराना हरा हुआ
ऐसा नहीं कि मेरे ग़म तब औरों से कुछ जुदा हुआ करते थे
क़िस्से कुछ जो सुने तो पाया सबका दिल है दुखा हुआ
आईना मैं जब भी देखूँ , कितने चेहरे दिख जाते हैं
हैरान हूँ मैं मिरा आईना किन यादों से है घिरा हुआ
वो सब से मिलता है खुल के बस मेरी तहक़ीर * करे
बच्चे का बस्ता अक्सर ग़लत किताबें भरा हुआ
बचपन में ख्वाहिश थी मेरी आसमान में तारा बन के सज जाऊँ
अब जब भी मैं ऊपर देखूँ कोई सितारा गिरा हुआ
तहक़ीर - उपेक्षा
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