Puppets Ghazal कठपुतलियाँ : ग़ज़ल
कुछ दोस्तों का साथ रहा कुछ अपने काम से पहुँच सके बहुत मुश्किलों से हम इस मुक़ाम पे घर से चला था साथ मिरी माँ की दुआ रही सायबां बन के बचाती रही वो मुझको घाम से अच्छे ख़ासे आदमी थे बन गए कठपुतलियां नाचते हैं जातियों और मज़हबों के नाम पे कोशिशें जो कर रहे हम को ख़रीदने की प्रदीप देख लो करके मुहब्बत बिक जाएँगे बिन दाम के प्रार्थना या अर्चना के लिए मंदिर ज़रूरी है कहाँ दिल में बस जाएँगे तुम्हार...