क्या यही प्यार है : कविता
लबों तक जो आया नहीं वो कहा है
तभी चेहरा इतना सुर्ख़रू हो रहा है
दुपट्टा इधर से उधर उड़ के जाए
बढ़ी धड़कनों को छुपा भी न पाए
नज़र बार बार झुकती सी जाए
आँखों से मय छलकती सी जाए
कहना था कुछ कहाँ ओर ही कुछ
इस बेताब दिल में बस ओर ही कुछ
काफ़ी का कप भी भरा ही रखा है
प्लेटों से दाना न एक भी चखा है
घड़ी का आलम ज़रा देख लो तुम
घड़ी, पल, छिन गए हों इधर थम
सन्नाटा इस समय पसरा हुआ है
वजूद अपना सारा बिखरा हुआ है
धड़कनें दिल की लगीं कुछ बताने
पहल कौन कर पाएगा ये न जाने
यूँ ही लोग नहीं हो जाते दीवाने
इसे ही कहा करते हैं प्यार सयाने
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