Kavita - jara see baat thi
ज़रा सी बात थी
ज़रा सी बात थी सर फुट्टवल हुए
बात न बन सकी फिर चूल्हे अलग हुए
हुक्के अलग हुए दिल बदल गए
खेत-खलिहान बँट गए दीवार खिंच गए
यहाँ तक तो फिर भी ग़नीमत थी
बात इतनी आगे तलक चली गई
आस्था बदल गईं विश्वास बदल गए
बुत बदल डाले इबादतगाह बदल गए
हाल यह हुआ रिश्तों के बीच में
अपने अपने खुदा भी बदल गए
बात मनवाने को शब्द कम पड़ने लगे
इसलिए भाले , ख़ंजर , नेज़े भी चलने लगे
एक ही खून था एक ही उद्गम उनका
फिर भी न जाने क्यों खुदा अलग-अलग हुए
किसी का तीसरे पे तो किसी का सातवें पे
ख़ुदाओं के रहने के आसमाँ भी बदल गए
रक्त रंजित है इतिहास इन्हीं कथाओं से
जा के पूछे कोई इन बहती हुई हवाओं से
किस का खून हर युग में बहा करता है
ज़ुल्म को बैठ के कौन चुपचाप सहा करता है
दोहराई गयी है हर काल-खंड में यही कथा
बदल गए हैं नाम, चेहरे नहीं कम हुई व्यथा .
Comments
Post a Comment