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Showing posts from June, 2024

हॉलीवुड बुलवार्ड में बंबइया मसाला तड़का

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हॉलीवुड बुलवार्ड में बंबइया मसाला तड़का पूरी दुनिया भर के व्यावसायिक सिनेमा प्रेमियों के लिए हॉलीवुड मक्का से कम नहीं . पूरे साल यहाँ  सिने प्रेमियों की ज़बरदस्त भीड़ रहती है . इस पूरे एरिया में सबसे आकर्षक क्षेत्र  हॉलीवुड बुलवार्ड है जहां सड़क के दोनों ओर के फुटपाथ पर दो हज़ार से भी अधिक उन हस्तियों के नाम अंकित हैं जिन्होंने हॉलीवुड को हॉलीवुड बनाया . ये किसी ख़ास जाति , धर्म या फिर संप्रदाय के नहीं थे पूरी दुनिया से आये वो लोग थे जिनका पैशन सिनेमा था . इस लोगों के सामूहिक प्रयास का नतीजा यह है कि कैलिफ़ोर्निया का लॉस एंजल्स इलाक़ा जो कभी लगभग उजाड़ और रेगिस्तानी पथरीला था दुनिया बेहतरीन फ़िल्म निर्माण केंद्र बन गया. यह फ़िल्म निर्माण का विशाल केंद्र तो है ही लेकिन यहाँ टूरिस्ट के लिए भी ज़बरदस्त आकर्षण विकसित किए गए हैं.  हम जब कल बुलवार्ड के पाथवे पर घूमते घूमते अपने पसंदीदा सितारों के नाम खोज रहे थे मुझे अपने पसंदीदा गायक फ्रैंक सिनात्रा का नाम दिखाई दिया. लता मंगेशकर भी फ्रैंक की ज़बरदस्त फैन थीं उन्होंने अपनी बेड साइड  टेबल पर उनकी तस्वीर फ्रेम करा के रखी हुई...

Revival of Golden Era of Vinyl Records

Revival of Golden Era of Vinyl Records  आजकल हमारे  पास अलेक्सा से लेकर टीवी तक गीत संगीत सुनने की  जितनी  भी डिवाइस हैं उनमें अधिकांश एनालॉग हैं इसलिए उनसे जो कुछ भी सुना जाता है उसमें वो आनंद नहीं जो एक जमाने में ग्रामोफ़ोन प्लेयर पर एलपी यानि लाँग प्लेइंग रेकार्ड बजाने पर आया करता था. ये रेकार्ड विनायल के बने होते थे इनकी तीन अलग अलग स्पीड होती थीं .. लेकिन आज भी अच्छा संगीत सुनने वाले पुराने एलपी रेकार्ड तलाशते रहते हैं . मेरे गृह नगर मुरादाबाद के गंज बाज़ार में एक स्टोव रिपेयर करने वाला बंदा शाम को छै बजे से पुरानी फ़िल्मी के हिट गीत अपने ग्रामोफ़ोन बाजे पर बजाना शुरू करता था चलते कदम ठहर जाते थे. बंबई में तो लोग पुराने रेस्टोरेंट में ज्यूक बॉक्स में अपनी पसंद के गाने सुनने जाते थे , ज्यूक बॉक्स में कॉइन डाल कर अपनी पसंद के गाने का इंतज़ार करते थे . उन्हीं दिनों हमारी रेलवे ऑफ़िसर्स कॉलोनी में बहुत सारे एंग्लो इण्डियन परिवार रहा करते थे जिनके तार इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा से जुड़े हुए थे उन्हीं में से एक के रिश्तेदार ने Grundig का रेकार्ड चेंजर  गिफ्ट ...

दिल ढूँढता है फिर वही : फ़िल्मी गानों की बुकलेट

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खारी बावली चाँदनी चौक दिल्ली का वो बिजी इलाक़ा है जहां आज एशिया का सबसे बड़ा ड्राई फ्रूट बाज़ार है . लेकिन कम लोगों को पता होगा कि एक लंबे समय तक यह इलाक़ा फ़िल्मी गानों की बुकलेट के प्रकाशन के लिए भी मशहूर  रहा है और इन बुकलेट का सिनेप्रेमियों के बीच ज़बरदस्त क्रेज़ था. क्योंकि फ़िल्मों के गाने और कथा सार  का स्रोत यही बुकलेट होती थीं. आज हिन्दी फ़िल्म के किसी भी गाने के लिए बोल चाहिए या फिर किसी फ़िल्म का कथा सार चाहिए तो कुछ ही सेकंड में नेट पर खोज सकते हैं इसलिए इन बुकलेट का महत्व आज समझना सहज नहीं है . पाँचवें, छठे , सातवें यहाँ तक कि आठवें दशक तक फ़िल्मी गीतों  के बोल के लिए चार से आठ पेज की बुकलेट इसी खारी बावली से निकला करती  थीं और उन प्रकाशकों में अग्रणी सिने बुक डिपो हुआ करता था, यक़ीन मानिए इन बुकलेट की  क़ीमत दस पैसे से लेकर पच्चीस पैसे तक होती थी. फ़िल्म और संगीत प्रेमी इन पुस्तकों को अपने शहर में फुटपाथ या फिर छोटे छोटे बुकसेलरों के पास तलाश लेते थे . उन दिनों फ़िल्मी गाने सुनने के लिए या तो फ़िल्म देखने जाना पड़ता था , टिकट एक रुपये का होने के वा...