दिल ढूँढता है फिर वही : फ़िल्मी गानों की बुकलेट

खारी बावली चाँदनी चौक दिल्ली का वो बिजी इलाक़ा है जहां आज एशिया का सबसे बड़ा ड्राई फ्रूट बाज़ार है . लेकिन कम लोगों को पता होगा कि एक लंबे समय तक यह इलाक़ा फ़िल्मी गानों की बुकलेट के प्रकाशन के लिए भी मशहूर  रहा है और इन बुकलेट का सिनेप्रेमियों के बीच ज़बरदस्त क्रेज़ था. क्योंकि फ़िल्मों के गाने और कथा सार  का स्रोत यही बुकलेट होती थीं.
आज हिन्दी फ़िल्म के किसी भी गाने के लिए बोल चाहिए या फिर किसी फ़िल्म का कथा सार चाहिए तो कुछ ही सेकंड में नेट पर खोज सकते हैं इसलिए इन बुकलेट का महत्व आज समझना सहज नहीं है . पाँचवें, छठे , सातवें यहाँ तक कि आठवें दशक तक फ़िल्मी गीतों  के बोल के लिए चार से आठ पेज की बुकलेट इसी खारी बावली से निकला करती  थीं और उन प्रकाशकों में अग्रणी सिने बुक डिपो हुआ करता था, यक़ीन मानिए इन बुकलेट की  क़ीमत दस पैसे से लेकर पच्चीस पैसे तक होती थी. फ़िल्म और संगीत प्रेमी इन पुस्तकों को अपने शहर में फुटपाथ या फिर छोटे छोटे बुकसेलरों के पास तलाश लेते थे . उन दिनों फ़िल्मी गाने सुनने के लिए या तो फ़िल्म देखने जाना पड़ता था , टिकट एक रुपये का होने के वावज़ूद बहुत महंगा लगता था , रेडियो रखना भी हर एक के बूते की बात नहीं थी लोगों को  बिनाका गीत माला सुनने के लिए नुक्कड़ के पान की दुकान पर खड़े रहना पड़ता था. शोर्ट वेव्स पर सिग्नल कभी आते थे कभी जाते थे , बोल अक्सर समझ में भी नहीं आते थे , गाना एक दो बार सुनने पर बोल याद नहीं होते थे  , ऐसे में गानों की ये बुकलेट बड़ी काम आती थीं. घर की मोरल पुलिस अक्सर इन बुकलेट के लिए बच्चों की तलाशी भी ली लिया करती थी, उसके बाद डाँट , सुंताई, पिटाई सभी कुछ होता था . मेरे एक बचपन के मित्र की ज़बरदस्त पिटाई उसके पास मुग़लेआज़म फ़िल्म की बुकलेट पाई जाने पर हुई थी क्योंकि उसमें “प्यार  किया तो डरना क्या” गाने के बोल थे जो उनके घर की  मोरल पुलिस के हिसाब से घटिया, सड़क छाप शोहदे लोगों का मटेरियल था. 
मेरे एक करीबी रिश्तेदार अंधेरी में रहते  थे उनके संग्रह में ऐसी कम से कम पंद्रह सौ बुकलेट थीं , जिन्हें वे अपनी एसेट या दौलत की तरह सहेज कर रखते थे . मुझे यक़ीन है कि वे ऐसे अकेले सिनेप्रेमी नहीं थे , देश भर में आठवें दशक तक ऐसे हज़ारों लाखों सिने प्रेमी थे. 
इंटरनेट के आगमन के साथ ही वक्त बदल गया उसी के साथ ये फ़िल्मी बुकलेट अब अतीत बन चुकी हैं. 



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