देवत्व : एक हिंदी कविता Hindi Poetry
देवत्व कई बार कोई साहित्य में ऐसा कर गुजरता है कि उसका लिखा एक एक शब्द रिचा या साम में बदल जाता है . कई बार ऐसा भी होता है एक नई संगीत रचना किसी के हृदय से निकल कर स्वर लहरी या फिर किसी वाद्ययंत्र पर थिरकने लगती है और वह आने वाले कालखंडों में अर्चना का स्वर बन जाती है . कभी कभी कोई मूर्तिकार अपनी छेनी और हथौड़ी से किसी पाषाण खंड में सोच के विस्तार से परे देवत्व उतार देता है तो स्वर्ग धरा पर ...