Hindi Poetry : वसीयत
वसीयत
आम रिवाज है धनपति अपने स्वर्गारोहण या नरकारोहण से बहुत पहले अपनी वसीयत बना देते हैं ताकि बाद में परिवार में वादविवाद या मुक़दमेबाज़ी न हो. सवाल यह है कि एक रचनाकार अपनी वसीयत में क्या लिखेगा ? प्रदीप गुप्ता की रचना :
एक दिन मैं बालकनी में खड़ा था
गम्भीर सोच में पड़ा था
पत्नी कल मुझे बता रही थी
मुझे लगा शायद मुझे चिढ़ा रही थी
हुआ यूँ पड़ोस की गली के सेठ गोपाल दास गुज़र गए
पत्नी के नाम विला, मार्केट , बच्चों के नाम बड़ी मिल कर गए
मोटा बैंक बैलेन्स , शेयर , सोना चाँदी भी छोड़ गए हैं
काफ़ी पैसा समाजसेवी संस्थाओं के लिए जोड़ गए हैं
पत्नी के चेहरे पर सवाल था मैं कौन सी विरासत छोड़ कर जाऊँगा
मेरी उलझन थी मेरे पास ऐसा क्या है जो किसी के नाम कर पाऊँगा
बैंक के कई खातों में मिला कर बीस हज़ार ही तो हैं
ले दे के रहने को दो कमरों का एक फ़्लैट ही तो है
वो संस्था के लिए ज़िंदगी भर काम किया
न दिन देखा न रात देखी न विश्राम किया
उसने उस दिन मुझे अलविदा कह दिया था
जिस दिन मुझे मेरी निवृत्ति का पत्र दिया था
उस संस्था की बुनियाद में आख़िर मेरे खून का कुछ अंश लगा था
यह और बात है इससे किसी को कोई फ़रक नहीं पड़ा था .
मेरी साइकिल से लेकर कार तक लोन पर ली गयी
एक लम्बी उम्र उन सबकी किश्तें चुकाने में कट गयी .
लेकिन मेरे पास ऐसा बहुत कुछ है जो हमेशा जोड़ रखता हूँ
पत्नी के लिए खट्टे मीठे पलों का ख़ज़ाना छोड़ सकता हूँ
जो शायद किसी बैंक बैलेन्स से ज़्यादा क़ीमती होगा
साथ संघर्ष किए पलों का स्वाभिमान भी होगा
बच्चों में संचय करता रहा आत्मविश्वास का बल
जो उनके साथ रहेगा हर क्षण हर पल
दोस्तों के लिए ढेर सारे अनुभव और चाहत
रिश्तेदारों के लिए सम्बन्धों की गरमाहट
कुछ ख़ास चेहरे मेरे लिए ताज़गी का टानिक थे
तमाम तनाव के बीच शीतल फुहार के मानिंद थे
वे भी ज़रूर उन पलों को याद रखेंगे
शायद वे वो बीते पल उन्हें आह्लादित रखेंगे .
कलम चलाने से बेशक पैसे नहीं कमाए हैं
पर मेरे लेखों , गीतों ने बहुत से पाठक बनाए हैं
जिन्हें इंतेज़ार रहता है मेरा कुछ नया पढ़ने का
जिनके मेल से बल मिलता है मुझे नया लिखने का
वे लोग मेरे बाद भी मुझे पढ़ने का सिलसिला जारी रखेंगे
इसी बहाने मुझे आगे भी याद रखेंगे
जो सच- बयानी मेरे लिखने का अहम हिस्सा है
वो संघर्ष का पाथेय है यह न समझे वो कोई क़िस्सा है
उसी को नई पीढ़ियाँ पढ़ेंगी और गाएँगी
मेरी इस विरासत को और आगे ले जाएँगी .
यही दौलत है मेरी यही कुल जमा पूँजी है
क्या वसीयत लिखूँ इसके लिए , मेरी कहानी जरा अलग सी है .....
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