देवत्व : एक हिंदी कविता Hindi Poetry

देवत्व 

कई बार कोई साहित्य में ऐसा कर गुजरता है 

कि उसका लिखा एक एक शब्द 

रिचा या साम में बदल जाता है . 

कई बार ऐसा भी होता है 

एक नई संगीत रचना किसी के हृदय से निकल कर 

स्वर लहरी या फिर किसी वाद्ययंत्र पर थिरकने लगती है 

और वह आने वाले कालखंडों में अर्चना का स्वर बन जाती है . 

कभी कभी कोई मूर्तिकार

अपनी छेनी और हथौड़ी से 

किसी पाषाण खंड में सोच के विस्तार से परे 

देवत्व उतार देता है 

तो स्वर्ग धरा पर कुछ क्षण के लिए उतर कर 

मानो ठहर जाता है . 

यहाँ तक तो सब कुछ ठीक है 

लेकिन परेशानी तब शुरू होती है 

जब इन कालजयी रचनाओं को कुछ सिरफिरे 

अपने आप को स्थापित करने के लिए

धारदार नोकीले हथियार के रूप में बदल देते हैं 

तब ये खूनी संघर्ष में विजेता के लिए 

जयघोष बन  जाती हैं . 

इन रचनाओं को गढ़ने वाले को 

कभी अंदाज़ा नहीं रहा होगा 

कि उनकी कालजयी कृतियाँ 

खूनी दरिंदों की राजसी महत्वाकांक्षाओं के लिए 

माध्यम बन कर सिमट जाएँगी . 

इतिहास के पृष्ठ पलट कर देखेंगे तो पाएँगे 

ऐसे ही रक्तरंजित आख्यान उनमें भरे पड़े हैं . 

हैरत होती है कि 

आज जब विज्ञान और तकनीक अपने उत्कर्ष पर है 

जीवन का स्तर पहले से कहीं बेहतर हो चुका है 

आम आदमी अपने पूर्वजों की तुलना में 

कही अधिक तार्किक सोच से चलता  है , वाबजूद इसके 

झूठ लोगों को नियंत्रित करके  राज करने की पिपासा 

फूट पड़ती है लिजलिजे रूप में दुनिया के किसी भी कोने में 

और  फिर से कालजयी रचनाएँ 

हथियार बन जाती हैं इन सिरफिरे लोगों के लिए 

और बलि  ले लेती  है समूची  पीढ़ी की

यक्ष प्रश्न यह है कि कब तक यह सिलसिला चलता रहेगा ? 



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