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Showing posts from October, 2023

लन्दन ब्रिज : लन्दन के इतिहास का साक्षी

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लन्दन ब्रिज : एक ब्रिज जो दो हज़ार साल के इतिहास का साक्षी है            -प्रदीप गुप्ता  दुनिया भर में लन्दन शहर की पहचान दो चीजों  से है लन्दन ब्रिज और  बिग बेन घड़ी. आज हम बात करेंगे लन्दन ब्रिज की जो शहर के बीचों बीच बहने वाली टेम्स नदी पर बना हुआ है . यह न सिर्फ़ नदी के एक किनारे से दूसरे तक यातायात का साधन भी रहा है वरन् पुराने जमाने में सामान से भरे जहाज़ों के आवागमन के लिए रास्ता भी देता रहा है .   लन्दन ब्रिज दुनिया का सबसे ज़्यादा फ़ोटो खींचे जाने वाले स्पॉट में से एक है . यही नहीं एक अरसे से यह लोक-कथाओं और दंत-कथाओं में तो शामिल है ही  , साथ ही अभिनीत फ़िल्म शूट का हिस्सा व चुका है. दुनिया के हर कोने में बच्चे नर्सरी राइम “लन्दन ब्रिज इस फ़ॉलिंग डाउन” गाते हैं.  मैं जब भी इस ब्रिज से गुज़रता हूँ तो देखता हूँ कि ब्रिज के दोनों तरफ़ की पृष्ठभूमि में फ़ोटो खींचने के लिए सैलानी लाइन लगा कर खड़े रहते हैं.  यह जान कर आपको हैरानी होगी कि इसका इतिहास दो हज़ार साल पुराना है,  यह ब्रिज इतने अरसे  से किसी न किसी ...

लन्दन : धर्म का बदलता चेहरा

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लन्दन में धर्म का बदलता चेहरा  छठे दशक में हमारी दादी हमें बताया करती थीं कि बरतानिया गोरे ईसाइयों का देश है और वहाँ की राजधानी लन्दन में सूट बूट और टाई पहनने वाले जेंटलमैन , टॉप और स्कर्ट पहनने वाली  गोरी मेमें रहती  हैं. जब से मेरा लंदन आना जाना शुरू किया है तबसे  मैं दादी के द्वारा बताये हुलिये के गोरे जेंटलमैन खोजता रहता हूँ.  वे अब आसानी से दिखायी  नहीं दिखते  हैं . लन्दन अब  ऐसा शहर बन चुका है जहां अब भिन्न भिन्न रंग रूप ,  शक्ल सूरत, वेशभूषा और भौगोलिक पृष्ठभूमि के लोग ज़्यादा मिल जाएँगे . शलवार कमीज में गबरू पठान, ईरानी, इराक़ी, बुर्के या अभाया में मुस्लिम महिलाएँ, कुर्ते पजामे में तिलकधारी हिंदू बुजुर्ग, माथे पर बिंदी , गले में मंगलसूत्र पहने साड़ी में हिंदू महिलायें , शनील की छोटी गोल टोपी में यहूदी , फूल और छींट के प्रिंट वाले वस्त्रों में अश्वेत अफ्रीकी मिलना आम बात है. 2021 में हुई जनगणना के आँकड़े तो चौंका देने वाले हैं . इसके अनुसार तो लन्दन में ईसाई  40.66% ही रह गए  हैं , इसके बाद नम्बर उन लोगों का है जो किसी भी धर्...

Last Battle For Survival : Regal Cinema

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एक बुरी खबर हवाओं में तैर रही है कि शायद मुम्बई का सबसे आइकॉनिक मूवी थियेटर रीगल बंद होने जा रहा है , ईश्वर करे कि यह खबर झूठी निकले . यह इमारत आज यह आलेख लिखे जाने के दिन अपने जन्म की नब्बेवीं वर्षगाँठ माना रही है .  हैप्पी बर्थडे रीगल सिनेमा .  कोलाबा के इंटरसेक्शन पर बना यह थिएटर अपनी  शानदार नब्बे वर्षों की शानदार कहानी समेटे हुए है जो मुम्बई शहर के  विकास के सफ़र की सबसे शानदार कहानी है .  यह मुम्बई शहर की यूनेस्को संरक्षित आर्ट डेको  परंपरा की बनी पहली इमारत थी .  यह इमारत कैसे और क्यों बनी इसका रोचक इतिहास है . कभी यह  जगह ब्रिटिश फ़ौज की हुआ करती थी जहां सलामी देने वाली तोपें रखी गई थीं.. जब भी ब्रिटिश वाइसराय या फिर और कोई अति विशिष्ट अतिथि आता तो उनके सम्मान में यहीं तोपों की सलामी दी जाती थी . पता नहीं ऐसा क्या हुआ 1926 से यह तोप सलामी प्रथा यहाँ से कहीं अन्यत्र शिफ्ट कर दी गई और यह प्लॉट ख़ाली हो गया. और इसे पारसी व्यवसायी फ्रामजी सिद्धवा और उनके रंगून  के व्यापारी मित्र के कूका ने लीज पर ले लिया. फ़्रॉमजी यूँ तो पारसी प्रीस्ट परि...