लन्दन ब्रिज : लन्दन के इतिहास का साक्षी

लन्दन ब्रिज :
एक ब्रिज जो दो हज़ार साल के इतिहास का साक्षी है 
          -प्रदीप गुप्ता 
दुनिया भर में लन्दन शहर की पहचान दो चीजों  से है लन्दन ब्रिज और  बिग बेन घड़ी. आज हम बात करेंगे लन्दन ब्रिज की जो शहर के बीचों बीच बहने वाली टेम्स नदी पर बना हुआ है . यह न सिर्फ़ नदी के एक किनारे से दूसरे तक यातायात का साधन भी रहा है वरन् पुराने जमाने में सामान से भरे जहाज़ों के आवागमन के लिए रास्ता भी देता रहा है .  
लन्दन ब्रिज दुनिया का सबसे ज़्यादा फ़ोटो खींचे जाने वाले स्पॉट में से एक है . यही नहीं एक अरसे से यह लोक-कथाओं और दंत-कथाओं में तो शामिल है ही  , साथ ही अभिनीत फ़िल्म शूट का हिस्सा व चुका है. दुनिया के हर कोने में बच्चे नर्सरी राइम “लन्दन ब्रिज इस फ़ॉलिंग डाउन” गाते हैं. 
मैं जब भी इस ब्रिज से गुज़रता हूँ तो देखता हूँ कि ब्रिज के दोनों तरफ़ की पृष्ठभूमि में फ़ोटो खींचने के लिए सैलानी लाइन लगा कर खड़े रहते हैं. 
यह जान कर आपको हैरानी होगी कि इसका इतिहास दो हज़ार साल पुराना है,  यह ब्रिज इतने अरसे  से किसी न किसी रूप में विद्यमान रहा है . 
इस ब्रिज को  बनाने की पहली कोशिश यहाँ आए रोमन विजेताओं ने पहली शताब्दी में की थी, उस समय यह बहुत साधारण तकनीक से बनाया गया पैंटून ब्रिज हुआ करता था , इसके लिए टेम्स के पहले एक किनारे  से दूसरे तक सरल रेखा में लंगर डाल कर बोट खड़ी की गई थीं  और इन बोट पर चौरस लकड़ी के तख्ते बिछा दिये गये थे.  
यह व्यवस्था कोई नौ सौ साल तक चलती रही , सन् नौ सौ चौरासी में एक स्थायी लकड़ी का ब्रिज बना लेकिन इसे ठीक तीस साल बाद किंग ओलाफ़ हाराल्ड्सों के  नेतृत्व में आये आक्रमणकारी वाइकिंग ने नष्ट कर दिया.
बारहवीं शताब्दी के प्रारंभ में नया ब्रिज बन कर तैयार हुआ , इस बार इसके निर्माण में पत्थर और लकड़ी दोनों इस्तेमाल किए गए. बीस फिट चौड़े और तीन सौ फिट लंबे इस ब्रिज की संरचना पीटर कोलचर्च की थी जो पादरी होने के साथ ही एक कुशल वास्तुकार भी था. इस ब्रिज की एक खूबी यह थी कि इस संरचना के मध्य में एक ड्राब्रिज (drawbridge) भी था जिससे कि नदी में आने जाने वाले जहाजों का आवागमन तो  संभव हो सके साथ ही  आक्रमणकारियों के संभावित ख़तरों को भी रोका जा सके. 
व्यापारियों ने इस पर अपना सामान बेतरतीबी से  जमा करना  शुरू कर दिया था जिसके कारण इसके  बनने के  बारह साल के भीतर ही इस पर भीषण आग लग गई जिससे  जान और माल दोनों की क्षति हुई . महीनों की मरम्मत के बाद यह फिर से चालू किया गया. 
इसके बाद अगला बड़ा हादसा सन् 1623 में हुआ उस वर्ष पूरा का पूरा  लंदन भीषण आग से झुलस गया था , इस आग से व्यापारिक और रिहायशी इलाक़ों के साथ ही इस पुल की हालत भी ख़स्ता हो गई . ब्रिज की पुन: युद्ध स्तर पर मरम्मत की गई, इस बार इसकी चौड़ाई भी बढ़ाई गई. 
ब्रिज बहुत अधिक इस्तेमाल में आता था , इस लिए टूट-फूट भी होती रही साथ ही  समय समय पर मरम्मत होती रही , इस तरह से यह ब्रिज  600 वर्षों से शान के साथ अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता रहा. 
इस ब्रिज के साथ बहुत सारी भयावह घटनायें भी जुड़ी हैं, सन् 1305 – 1660 के बीच यहाँ पर सत्ता विरोधियों के सर कलम करके कोलतार में डुबो कर यहाँ टांग दिए जाते थे , आप पूछेंगे सर कोलतार में क्यों डुबाया जाता था, इस प्रक्रिया से यह लंबे समय तक यथावत बना रहता था. जिन लोगों के सर काट कर लन्दन ब्रिज पर लटकाये गए उनकी सूची बहुत लम्बी है इस में विलियम वॉलिस, ओलिवर क्रोमवेल और सर थॉमस मोर भी शामिल थे. यह अमानुषिक प्रथा  सन् 1660 में किंग चार्ल्स द्वितीय के शासन में जा कर ख़त्म हुई. 
हम आज जिस लंदन ब्रिज को देखते हैं वो पुराने ब्रिज की ही नींव पर 1972 में बन कर तैयार हुआ है. लन्दन में अब तो आइकोनिक टावर ब्रिज, वेस्टमिनिस्टर,  मिलेनियम ब्रिज जैसे ब्रिज मिला कर सड़क,  रेल और पदचारियों के 35 ब्रिज हैं लेकिन जो ग्लैमर लन्दन ब्रिज के साथ जुड़ा है वह अन्यय है.


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