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Showing posts from December, 2022

संभल के हकीम रईस

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एक शानदार व्यक्तित्व और परम्परा की याद हकीम कौसर के साथ.  यह तो मुझे पता नहीं कि अब से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व हकीम सग़ीर अहमद कहाँ से आ कर संभल में आ कर बसे  थे , लेकिन अपनी हिकमत के कौशल और मरीज़ों के प्रति अपने व्यवहार की वजह से इस क़स्बे के हो कर रह गए . इस परंपरा को उनके पुत्र हकीम रईस ने आगे बढ़ाया. नब्ज देख कर बीमारी की सही सही पहचान करना उनकी खूबी थी , उनके द्वारा पकड़ी बीमारी की पुष्टि के लिए कुछ  लोग खून , पेशाब और स्टूल की जाँच कराते थे तो पाते थे कि महज नाड़ी से जो निदान उन्होंने सुझाया था वह सही था . उनकी कोई परामर्श फ़ीस नहीं थी , सिर्फ़ दवाओं के पैसे लेते जिनमें अर्क, आसव, काढ़े , चटनी , माजून हुआ करते थे . जो लोग दवाओं के पैसे देने की स्थिति में नहीं होते थे वे उन्हें भी दवाई देते थे . उनके नुख़्से में दवा तो लिखी होती थी इसके साथ ही एक लम्बी सूची मुद्रित होती थी कि मरीज को क्या क्या चीजें भोजन में लेनी हैं और किन चीजों से परहेज़ करना है . उनके पास संभल के ही नहीं दूर दूर से लोग निदान के लिए आते थे , उनके मरीज़ों में एक नाम जाने माने अभिनेता दिलीप कुमार का भी ह...

ये सब फूल तुम्हारे नाम - ग़ज़ल संग्रह शायर ज़िया ज़मीर

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ज़िया ज़मीर की ग़ज़लें आयकर और बिक्री कर के लिए बैलेंस शीट , खाता बही की फ़िगर जाँचने के रूटीन और एकरस काम के बीच इंसानी संबंधों  के बारीक ताने बाने  , ज़िंदगी के मसाइल , लोक परलोक के बारे में बेहतरीन शायरी करना हैरत की बात है लेकिन भाई जिया ज़मीर यह काम बखूबी करते आ रहे हैं . पेशे  से आयकर के एडवोकेट जिया ने हाल ही में एक मुलाक़ात में अपना  ताज़ा ग़ज़ल/ नज़्म संग्रह “ये सब फूल तुम्हारे नाम” भेंट किया . सच कहूँ उसे एक ही सीटिंग  में पढ़ गया. यह संग्रह आश्वस्त करता है कि उनके अंदर एक अच्छा शायर जन्म ले रहा है.  उनकी शायरी में भारतीय लोक संस्कृति की झलक दिखती है , कई सारे प्रतिमान भी अपनी परम्परा से उठा लिए गए हैं नमूना देखिए - अपनी राधा को भी , अपनी मीरा  को भी  श्याम हाथों से छू बांसुरी की तरह .  राधा की उदासी के ही चर्चे हैं यहाँ पर   मीरा की भी सोचिए घनश्याम उदासी  किताबी  बस्ते के बोझ को लेकर जिया काफ़ी गंभीर हैं - स्कूली  किताबों  ज़रा फ़ुरसत उसे दे दो    बच्चा मिरा तितली पे झपटता ही नहीं  बच्च...