संभल के हकीम रईस

एक शानदार व्यक्तित्व और परम्परा की याद हकीम कौसर के साथ. 
यह तो मुझे पता नहीं कि अब से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व हकीम सग़ीर अहमद कहाँ से आ कर संभल में आ कर बसे  थे , लेकिन अपनी हिकमत के कौशल और मरीज़ों के प्रति अपने व्यवहार की वजह से इस क़स्बे के हो कर रह गए . इस परंपरा को उनके पुत्र हकीम रईस ने आगे बढ़ाया. नब्ज देख कर बीमारी की सही सही पहचान करना उनकी खूबी थी , उनके द्वारा पकड़ी बीमारी की पुष्टि के लिए कुछ  लोग खून , पेशाब और स्टूल की जाँच कराते थे तो पाते थे कि महज नाड़ी से जो निदान उन्होंने सुझाया था वह सही था . उनकी कोई परामर्श फ़ीस नहीं थी , सिर्फ़ दवाओं के पैसे लेते जिनमें अर्क, आसव, काढ़े , चटनी , माजून हुआ करते थे . जो लोग दवाओं के पैसे देने की स्थिति में नहीं होते थे वे उन्हें भी दवाई देते थे . उनके नुख़्से में दवा तो लिखी होती थी इसके साथ ही एक लम्बी सूची मुद्रित होती थी कि मरीज को क्या क्या चीजें भोजन में लेनी हैं और किन चीजों से परहेज़ करना है . उनके पास संभल के ही नहीं दूर दूर से लोग निदान के लिए आते थे , उनके मरीज़ों में एक नाम जाने माने अभिनेता दिलीप कुमार का भी है जो एक बार परामर्श के लिए आये दवा शरीर को लग गई फिर तो लम्बे समय तक किसी न किसी व्यक्ति के माध्यम से मंगाते रहे . यही हकीम रईस  मेरे बाबूजी के बहुत करीबी मित्र रहे  , शानदार डील डौल , गोरा चिट्टा रंग , टमाटर की तरह सुर्ख़ गाल और बिल्लौरी आँखें, ऐसा लगता था कि पुरानी ग्रीक मिथक कथाओं का पात्र आपके सामने खड़ा हो . मैंने उन्हें बचपन में देखा था और  उनकी छवि आज तक ज़ेहन में अंकित है . गांधी के दर्शन से हकीम जी काफ़ी मुतासिर थे , हमारे संभल के घर की बैठक में गांधी जी की फ्रेम की हुई पेंटिंग लगी थी वो उन्होंने ही बाबूजी को भेंट की थी . संभल के ऐतिहासिक तीर्थ स्थल पर मनोकामना पर आज तक चल रहा विद्यालय बनाने में उनका बड़ा वित्तीय योगदान रहा , यही नहीं क़स्बे के कितने ही अन्य  स्कूलों को भी उन्होंने अपना सहयोग  दिया. 
हाल ही की संभल यात्रा के दौरान मेरी मुलाक़ात उनके बेटे हकीम कौसर से हुई जो अपने अन्य  तीन भाइयों के साथ हकीम रईस की परम्परा को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं , कौसर राजनीति में भी सक्रिय हैं , नगरपालिका के चेयरमेन रह चुके हैं .  उनसे मुलाक़ात के दौरान हकीम रईस के व्यक्तित्व का एक अलग ही पहलू उभर कर आया. कौसर AMU से पढ़ कर आए थे और अपनी प्रैक्टिस से ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा ख़रीदना चाहते थे , जब यह प्रस्ताव हकीम रईस को पता चला उन्होंने अपनी बीबी और  बेटों और बेटियों को एक साथ बिठाया और इस बारे में अपनी राय बतायी , उनका कहना था कि अगर ज़मीन ख़रीदी गई तो न सिर्फ़ भाइयों में उसे लेकर टकराव बढ़ेगा बल्कि आसपास बसे लोगों से भी वाद - विवाद होगा , उन्होंने सुझाव दिया कि इस सारे  पैसे को  बच्चों की अच्छी शिक्षा में लगाना चाहिए . उनका गुरूमंत्र बच्चों ने अपना लिया जिसके चलते उनके परिवार के सहयोग से  कितने ही कमजोर आय वर्ग के परिवारों के बच्चे उच्च शिक्षा हासिल कर चुके हैं . हकीम रईस के सुझाव पर अमल करते हुए कौसर और उनके भाई बहनों ने अपनी अगली पीढ़ी को अच्छी शिक्षा दिलायी और यह परिवार अब  चिकित्सा के क्षेत्र  में अग्रणी हैं . यही नहीं कौसर ने अपनी फिजियोथिरपिस्ट बेटी को दहेज में केवल और केवल फिजियोथिरेपी के उपकरण दिये . हकीम रईस  ने अपने बेटों के अरस्तू , सुकरात जैसे नाम रखे थे , कौसर भाई ने इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपने बेटे का नाम सागर रखा है . धर्म की जगह यह परिवार मानवीय मूल्यों को महत्व देता रहा है . एक छोटे से क़स्बे संभल में जहां सांप्रदायिक द्वेष का लंबा इतिहास रहा है , यह हकीम परिवार एक प्रेरक प्रकाश स्तंभ की तरह से खड़ा हुआ है.


Comments

Popular posts from this blog

Is Kedli Mother of Idli : Tried To Find Out Answer In Indonesia

A Peep Into Life Of A Stand-up Comedian - Punit Pania

Searching Roots of Sir Elton John In Pinner ,London