शाही मिठाई सोहन हलवा

दास्तान - ए - सोहन हलवा 
अगर मिठाई की बात करें तो मुझे बचपन से लेकर आज तक सोहन हलवा सबसे अच्छा  लगता रहा है . 
बचपन की याद है , जैसे ही जाड़े की शुरुआत होती थी बाबूजी या तो चाँदनी चौक  दिल्ली की  घंटेवाले की दुकान से या फिर रामपुर के किसी मशहूर हलवाई से इसे विशेष रूप से मंगवाते थे . उन दिनों यह मिठाई केवल जाड़ों में बनती थी . यह पहली बाइट में कड़क लगती थी लेकिन जल्दी ही मुंह में घुल जाती थी , स्वाद इतना बेमिसाल कि केवल खा कर ही जाना जा सकता है .आज भी  पुरानी दिल्ली , अजमेर और रामपुर में सबसे बढ़िया सोहन हलवा बनता है . 
खाने पीने की रेसीपी ने सभ्यता के भिन्न भिन्न पड़ाव में शासकों  और व्यापारियों के लाव-लश्कर के साथ एक क्षेत्र  से दूसरे  और फिर कितने ही क्षेत्रों में यात्रा की है और फिर वे डेलिकेसी स्थानीय बन कर रह गई हैं . यही कहानी हलवे की है , यह शब्द मूलत: अरबी का है लेकिन भारतीय उप महाद्वीप में सोहन हलवे की  रेसिपी ईरान से आई है . आज भी ईरान के कॉम शहर में एक बहुत पुरानी बेकरी सोहन-ए- कॉम है जो अपने तरह तरह के हलवों के लिए मशहूर है उनमें से एक सोहन हलवा भी है . लेकिन भारतीय उप महाद्वीप में सोहन हलवा सबसे ज़्यादा मशहूर मुलतान के इलाक़े का हुआ था   . वहाँ सोहन हलवे के बारे में एक दंत कथा चली आती है कि यहाँ अट्ठारहवीं शताब्दी में सोहन नाम का हलवाई था , एक दिन उसकी दुकान पर दूध फट गया , उसने इस फटे दूध से नया प्रयोग करने की कोशिश की , बड़े कढ़ाव में उसे खूब औटाया, जब वह गाढ़ा होने लगा इसमें मैदा, शुगर , घी और ड्राई फ्रूट मिला कर छोटी छोटी गोल टिक्की की तरह जमा दिया , जब उसने दुकान के नियमित ग्राहकों को यह नई मिठाई पेश की उन्हें बेहद पसंद आई , फिर  तो उसने यह रोज बनानी शुरू कर दी . उन दिनों मुलतान महाराजा रणजीत सिंह के राज्य का हिस्सा था और वहाँ के दीवान सावन मल हुआ करते थे सोहन हलवाई ने उन्हें  अपनी नई मिठाई पेश की , उन्हें यह इतनी पसंद आई कि उन्होंने इसे  शाही मिठाई का दर्जा दे दिया  . 
अब बात करते हैं उत्तर भारत में इसके प्रवेश की , रामपुर रियासत  के नवाबों का इतिहास आज के अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान के मध्य के  इलाक़े से जुड़ा हुआ है  , वे लोग अपने साथ अपनी इस शाही डेलीकेसी को ले कर आए थे इसलिए रामपुर रियासत और उसके अधीन क़स्बों में जाड़ों के महीने में यह मिठाई मिला करती थी , रामपुर से ही यह दिल्ली और अजमेर तक पहुँची . ईरान, पाकिस्तान और भारत में थोड़ा सा इसे बनाने के तरीक़े और शेप में अंतर मिलेगा लेकिन एक बात समान है , ड्राई फ्रूट और घी का इसमें प्रचुर मात्रा में इस्तेमाल होता है . इस  मिठाई में शुद्ध देसी घी काफ़ी  रहता है जिसकी वजह से  यह बहुत  नाज़ुक है और  गरमी बर्दाश्त नहीं कर पाती , जरा सी गरमी लगी और यह पिघल जाती है इसलिए हम लोगों के इलाक़े में यह केवल जाड़ों के मौसम  में ही बनाई जाती है .


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