व्यंग से ग़ायब होता व्यंग
व्यंग में से ग़ायब होता व्यंग
-प्रदीप गुप्ता
जिस तरह हाल ही के वर्षों में दूध से दूध , घी से घी , चीज से चीज , खोये से खोया , पनीर से पनीर , मसालों में से मसाले ग़ायब होते जा रहे हैं ठीक उसी तरह से व्यंग में से व्यंग कुछ ऐसे ग़ायब होने लगा है कि अब इसे व्यंग मान लेना ही विद्रूप हास्य बनता जा रहा है .
शुरुआत कुछ इस तरह से हुई कि लिखने वाले ने व्यंग में फूहड़ हास्य का तड़का लगाना शुरू किया , मंच पर पढ़े कुछ इस क़िस्म के व्यंग को श्रोताओं की तालियाँ तो अधिक मिलने लगीं लेकिन चुभन कम होती गई .
अतीत के भारत में राजशाहियों के दौर में भी व्यंग्यकारों ने राजाओं तक को अपने चुटीले व्यंग से नहीं छोड़ा था जो अभी तक संस्कृत की पोथियों में अंकित है .
एक नमूना देखिए :
वैद्यो हरेच्छतं पश्यन् सहस्रं पुनरानपन् |
स्पृशंल्लक्षं चिकित्संस्तु प्राणानेव शरीरिणाम् ||
ग्यारहवीं शताब्दी के क्षेमेन्द्र ने समय मातृका लिखी जिसमें सामाजिक ताने बाने पर चुटीला व्यंग मिलता है. फिर चौदहवीं शताब्दी में जगदेवसारा भट्टाचार्य ने हास्यहास्यार्नव लिखा जिसमें अब तक लिखे गये सबसे रोचक राजनीतिक व्यंग हैं . अगर वह इन दिनों लिखे जाते तो लेखक पर कई गंभीर धाराएँ लगाकर लंबे समय के लिए अंदर कर दिया जाता .
वस्तुस्थिति यह है कि व्यंग्यकार को लगता है कि अगर वह धर्म को लेकर कोई चुटीली टिप्पणी करेगा तो ध्वज वाहक समूह उसका रहना दूभर कर देंगे , अगर राजनीतिक व्यवस्था पर तंज कस दिया तो ईडी या फिर सीबीआई घर के दरवाज़ पहुँच जाएगी . सामाजिक बुराई के बारे में अगर कुछ लिखेगा तो धरनी सेना से लेकर मारक समूह किसी की भी भावना आहत हो सकती है जिसके बदले ये समूह व्यंग्यकार का मुँह काला करने से ले कर देस निकाला तक की घोषणा कर सकते हैं . इस लिए न लिखना ही अपने आप में एक व्यंग बन गया है .
शरद जोशी या फिर हरि शंकर परसाई तो बहुत दूर की बात है अब तो स्टैंड-अप कॉमेडियन तक के शो चलते चलते बंद हो जाते हैं . इस धंधे का जोखिम देख कर जीईसी पर नये कामेडी शो बनने कब के बंद हो चुके हैं . अमेरिकी टी वी चैनल पर प्रसारित होने वाले शो South Park , 30 Rock, the daily show , last week tonight , the late show with Stephen Colbert , last night देखिए इसमें सत्ता पक्ष से लेकर ग़ैर सत्ता पक्ष के बड़े से बड़े नेता आना पसंद करते हैं जबकि उन्हें पता है कि यहाँ हॉट सीट पर बैठ कर ज़बरदस्त खिंचाई होनी तय है . जिस साहस के साथ इन शो में सत्ता पक्ष से सवाल किए जाते हैं वह देखते ही बनता है. इन जैसा कोई शो किसी भारतीय द्वारा किसी भारतीय चैनल पर आ पाएगा यह सूचना भी अपने आप में बड़ा व्यंग है .
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