विज्ञान, क्राइम और जासूसी यानि अकरम इलाहाबादी के उपन्यास

अकरम इलाहाबादी - पल्प में विज्ञान कथा 
पिछले कुछ दिनों से में भारत और ख़ासकर हिंदी और उर्दू में प्रकाशित रोमानी और जासूसी उपन्यासों के चंद लेखकों को अपनी स्मृति से खंगाल कर बाहर लाने की कोशिश की है .  यूँ तो उन्हें पल्प साहित्य की श्रेणी में रखा जाता रहा लेकिन ये पल्प लेखक जो भी लिखते थे वो आम पाठक से आम पाठक की ज़ुबान में संवाद करता था इस लिए खूब बिकता था . जब मैंने इब्न-ए - सफ़ी के बारे में लिखा तो उनके लगभग समकालीन अकरम इलाहाबादी का ज़िक्र नहीं किया , इसे पढ़ कर मेरे अग्रज और क्राइम लेखक ए टी ज़ाकिर ने कहा कि मैंने अकरम जी के साथ न्याय नहीं किया. दरअसल अकरम की genre थोड़ी अलग  थी उन्हें विज्ञान कथा लेखक कहना ज़्यादा मुनासिब होगा , हाँ इसमें जासूसी और अपराध भी शामिल होता था . 
अगर इब्न-ए - सफ़ी की जासूसी दुनिया पाठकों में लोकप्रिय थी तो अकरम इलाहाबादी की जासूसी पंजा भी कम लोकप्रिय नहीं थीं. उनके पहले उपन्यास में चंद्रमा पर रहने वाले लोगों की कहानी थी जो अपनी मायावी तरंगों से पृथ्वी पर भूकंप लाते हैं. 
 उनकी सलाज़र श्रृंखला खूब लोकप्रिय हुई थी , मुझे आज भी इस श्रृंखला का उपन्यास “जिन्नों की गढ़ी” याद है . एक और उपन्यास जंक्शन बिलारा भी ज़ेहन में बसा हुआ है. 
सैय्यद मोहम्मद अकरम उर्फ़ अकरम इलाहाबादी  इलाहाबाद के ज़मींदार घराने में १९२६ में पैदा हुए , बारह वर्ष की उम्र में पिता का साया उठ गया , लेकिन उन्हें अपने पिता की ज़मीन जायदाद से कहीं ज्यादा रुचि लिखने पढ़ने में थी इसलिए संपत्ति का काम भाई के हवाले करके भोपाल पढ़ने चले गए . शुरुआती दौर में वाक़िफ़ इलाहाबादी के नाम से शायरी की. ग्रेजुएशन के बाद वापस इलाहाबाद आ कर पत्रकारिता की. कई रिसाले निकालने के बाद फिर बम्बई आ गये और १९५३ से उपन्यास लिखने का सिलसिला शुरू किया. कहते हैं उन्होंने दो हज़ार से भी अधिक उपन्यास लिखे थे , उनका परिवार ढूँढ ढूँढ कर अब इन उपन्यासों को डिजिटाइज़ करने की कोशिश में लगा हुआ है .
उनके पात्र सुपरिंटेंडेंट हुज़ूर अहमद ख़ान , सार्जेंट इक़बाल अहमद , इंस्पेक्टर मधुकर उनकी सहायक राजी, इंस्पेक्टर सादिक़ , जैकब आदि खूब लोकप्रिय हुए. उपन्यास सालाज़र 7, आसमानी जंग , टैनी मखलूक मुझे आज भी याद हैं . एक और बात अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ़ कैनेडी की हत्या के बाद अपनी कल्पना शक्ति से एक बेहतरीन प्लॉट विकसित किया था . 
माहौल कुछ कुछ बदल रहा है पिछले दिनों अकरम इलाहाबादी पर उर्दू में पीएचडी के लिए शोध प्रबंध स्वीकार किया गया है .










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