सुरेंद्र मोहन पाठक के बहाने पड़ताल - क्या हिंदी में पल्प जासूसी लेखन सच में पल्प है ?
एक जमाना था जब इब्न-ए-सफ़ी जासूसी उपन्यासों के भारतीय उप महाद्वीप के बेताज बादशाह हुआ करते थे . इलाहाबाद में जन्मे और आज़ादी के बाद कराची में जा कर बस गए असरार अहमद का इब्न-ए-सफ़ी पेन नेम था. पाकिस्तान चले जाने के वावज़ूद उनके उपन्यास इलाहाबाद से जासूसी दुनिया सीरिज़ में निकलते रहे . एक बार पूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था वे भी इब्न-ए-सफ़ी के फ़ैन थे . अब से तेरह वर्ष पूर्व उनके कुछ उपन्यास Random House ने अंग्रेज़ी में अनूदित करके प्रकाशित करके उन्हें पल्प से बाहर निकालने की कोशिश की थी .
इब्न-ए-सफ़ी के बाद कर्नल रणजीत के क्राइम थ्रिलर ने भी खूब हंगामा मचाया , इस घोस्ट राइटिंग के पीछे उर्दू मिलाप में काम करने वाले मक़बूल जालंधरी थे .
क्राइम थ्रिलर और जासूसी नावेल लिखने में सुरेन्द्र मोहन पाठक ने भी ज़बरदस्त नाम कमाया है उनके सारे उपन्यासों को जोड़ा जाए तो उनके प्रिंट करोड़ से अधिक बैठेंगे. फिर भी साहित्य से जुड़े लोग उन्हें पल्प लेखक ही मानते हैं .
आज़ादी से पूर्व खेमकरण, अमृतसर, पंजाब में जन्मे पाठक विज्ञान के विद्यार्थी थे , साथ ही अंग्रेज़ी के थ्रिलर पढ़ने के शौक़ीन थे , कालेज के बाद नौकरी टेलीफोन विभाग में करना शुरू किया . पाठक ने लिखने की शुरुआत इयान फ्लेमिंग की जेम्स बांड श्रृंखला के उपन्यास अनुवाद करने से की, प्रारंभिक दौर के इन उपन्यासों के अनुवाद की भाषा कसी हुई नहीं थी क्योंकि वे जेम्स बॉण्ड के कथानकों के परिवेश से परिचित नहीं थे. फिर भी वे लोग जिन्हें अंग्रेज़ी नहीं आती थी लेकिन जेम्स बॉण्ड के उपन्यास पढ़ना चाहते थे उन्होंने इन अनुवादों को हाथों हाथ लिया .
साठवें दशक के शुरू में उनकी पहली कहानी मनोहर कहानियां में प्रकाशित हुई नाम था“५७ साल पुराना आदमी” उस के बाद फिर पाठक ने पीछे मुड कर नहीं देखा , लगातार लिखते रहे . सन 1969 में इनका पहला पूर्ण उपन्यास “ऑपरेशन बुडापेस्ट” आया। इससे पहले “पुराने गुनाह नए गुनाहगार”, सन 1963 में “नीलम जासूस” नामक पत्रिका में छपा था. सन 1963 से सन 1969 तक विभिन्न पत्रिकाओं में इनके उपन्यास छपते रहे.
अपने उपन्यास “असफल अभियान” से लोकप्रियता का नया सोपान हासिल किया . एक और उपन्यास "पैंसठ लाख की डकैती" भी काफ़ी चर्चित हुआ. इस उपन्यास का अंग्रेजी में अनुवाद भी प्रकाशित हुआ. कुल मिला कर उनके अब तक उनके तीन सौ से भी अधिक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं .
पाठक के उपन्यास मोटे तौर पर मुख्यत: पाँच श्रृंखलाओं में के अन्तर्गत विभाजित किए जा सकते है , इनमें प्रमुख सुनील श्रृंखला है इसका मुख्य करैक्टर इनवेस्टिगेटिव पत्रकार सुनील है इसमें 122 उपन्यास आ चुके है..जासूस सुधीर कोहली श्रृंखला में 22 उपन्यास आए . लेकिन उनकी सबसे अधिक लोकप्रिय श्रृंखला विमल नाम के चरित्र को लेकर रची गई , विमल एक इश्तहारी अपराधी है लेकिन उसका चरित्र चित्रण पाठक के मन पर बेहतरीन प्रभाव छोड़ता है. चंद ऐसे भी थ्रिलर भी हैं जिनका कोई नियत केंद्रीय चरित्र नहीं है.
उनके समवर्ती जासूसी कथाकार वेदप्रकाश शर्मा भी काफ़ी लोकप्रिय हुए हैं. एक और नाम जो ज़रा कम परिचित है मेरे अग्रज ए टी ज़ाकिर का है उन्होंने भी इस विधा में अच्छा लिखा है .
यह सही है पाठक के उपन्यास पल्प लिटरेचर के रूप में प्रकाशित हुए लेकिन उनकी लोकप्रियता और उपन्यासों की गुणवत्ता को देख कर पेंगुइन और हार्पर कालिन्स जैसे जाने माने प्रकाशकों ने प्रकाशित किए है . हैरानी की बात यह है कि उनके उपन्यासों की ज़बरदस्त लोकप्रियता के वावज़ूद उनके किसी भी उपन्यास पर अभी तक कोई फ़िल्म नहीं बनी है.
बीते 6 दशकों में सुरेन्द्र मोहन पाठक और उनके समवर्ती जासूसी लेखकों ने ने अपने उपन्यासों के ज़रिए दूर-दराज के गांवों तक हिंदी के पाठकों का बड़ा वर्ग तैयार किया है . जिसे ध्यान में रखते हुए राजकमल प्रकाशन समूह ने पाठक की आत्मकथा दो भागों में प्रकाशित किया है जिसमें पाठक अपने रचनाकाल के वक़्त को परत दर परत खोलते हुए हमारे सामने ले आते हैं.
सुरेन्द्र मोहन पाठक के जीवन से यह जानना वाकई दिलचस्प होगा कि उन्होंने अपने उपन्यासों द्वारा किस तरह पाठकों के बीच इतनी लोकप्रियता हासिल की उसके लिए तो विस्तार से उनकी आत्मकथा पढ़नी पड़ेगी .दूसरी बात - पाठक और उनके पूर्ववर्ती
इब्न-ए-सफ़ी (असरार अहमद), कर्नल रणजीत (मक़बूल जालंधरी), समवर्ती वेद प्रकाश शर्मा , ए टी ज़ाकिर (अतुल टण्डन) आदि के लिखे हुए को लुगदी कह कर नकारना सही नहीं है उसका निरपेक्ष आकलन होना चाहिए और क्राइम, थ्रिलर को स्वतंत्र विधा के रूप में स्वीकार करना चाहिए जैसे तिलिस्म लिखने वाले देवकी नंदन खत्री को किया हुआ है .
Comments
Post a Comment