Halloween is celebrated on 31st October (हिंदी में)

हेलो ! आज हैलोवीन है 

मैं सिएटल में हूँ यहाँ एक सप्ताह पूर्व बड़े ही धूम धाम से दीपावली मनाया गया था , और आज बारी हैलोवीन की है , बच्चे कई दिनों से इसकी तैयारी में लगे हुए हैं  , बड़े जतन से घर के बाहर सजावट कई दिनों से चालू थी . बड़े बड़े कद्दू ला कर उस पर भूतिया आकृति चाकुओं से तराशना  हर घर का शग़ल है . दुकानों पर हर आकार प्रकार और रंगों के कद्दू मिल जाते हैं. आस पड़ोस के घरों में प्रतियोगिता इस बात की रहती है कि किसकी सजावट सबसे ज्यादा डरावनी है , लॉन  अस्थायी क़ब्रगाह , पेटियो चुड़ैल और भूतों के बसेरे में बदल चुके हैं . शाम को घर के बाहर तरह तरह की पोशाकों में बच्चों की टोलियाँ आनी शुरू हो जायेंगी . इनकी शरारतों से मुग्ध हो कर ट्रिक्स n ट्रीट का सिलसिला चलेगा  है अपनी हैसियत के हिसाब से बच्चों को उपहार दे कर विदा किया जाएगा . 
हैलोवीन को ईसाइयत से जोड़ कर देखना उचित नहीं क्योंकि यह त्योहार ईसा के जन्म से भी पूर्व से मनाया जाता रहा है . यह प्राचीन सेल्टिक परम्परा से है.  हर साल यह 31 अक्तूबर को मनाया जाता है क्योंकि यही वह समय है जब  कड़क जाड़ों का  आग़ाज़ होता  है इसके बाद यूरोप में लोग ठंड के कारण घरों में सिमट कर रह जाते हैं.  यह कुछ कुछ हमारे पितृपक्ष जैसा ही है क्योंकि आयरलैंड, ब्रिटेन, फ़्रांस के लोग मानते आ रहे हैं कि  मृतकों की आत्माएं इस दौरान  पृथ्वी पर घूमती हैं इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए लोग अपने इष्ट मित्रों के साथ अलाव जला कर अलाव के  इर्द गिर्द नाचते गाते और जीवन का जश्न मनाते थे .  यूरोप के लोग जब अमेरिकी महाद्वीप पर आ कर बसे तो अपने साथ यह परम्परा ले कर आए . 
आज इस त्योहार का खूब बाज़ारीकरण हो चुका है , हैलोवीन के प्रॉप्स , सजावट की बिक्री बिलियनों डालर का  व्यवसाय बन चुका है . यही नहीं रेस्टोरेंट हैलोवीन काकटेल, हैलोवीन डिशेज और हैलोवीन  गीत संगीत से लोगों को आकर्षित करते हैं .
इस अवसर पर सब्ज़ी को तराश कर सजाने की परम्परा भी हज़ारों साल पुरानी है, आयरलैंड में  लोग शरद ऋतु समारोह के दौरान  अच्छी आत्माओं को आमंत्रित करने के लिए अपने घरों के रास्ते पर शलजम, आलू, चुकंदर  जैसी सब्जियों पर  चेहरों को उकेर कर रख देते थे और साथ ही वहाँ प्रकाश भी करते थे . कालांतर में तराशने के लिए भूमिगत सब्ज़ियों से कद्दू को बेहतर माध्यम समझा जाने लगा क्योंकि यह अंदर दिया जला कर लालटेन में बदल जाता है . 
जादू टोने पर भारतीयों का एकाधिकार नहीं है . यह दुनिया के हर हिस्से में किसी न किसी रूप में प्रचलित है . कई यूरोपीय क्षेत्रों में बसे लोग यह भी मानते हैं कि  हैलोवीन ही ऐसा समय है जब जादू टोने अपने सबसे ज्यादा शक्तिशाली रूप में होते हैं और आत्माएं भौतिक दुनिया के साथ संपर्क कर सकती हैं. इसलिए अच्छी आत्त्माओं को राह दिखाने के लिए और बुरी आत्माओं को दूर रखने के लिए कद्दू में नक्काशी कर के उसे लालटेन की तरह जला कर घर के बाहर रखा जाता है.
मान्यता कुछ भी हो लेकिन एक बात तय है कि ठंडे देशों में भीषण ठंड के कारण कुछ महीने घरों में क़ैद हो जाने से पहले मनाये जाने वाले इस उत्सव से मेल मिलाप, मौज मस्ती का ज़बरदस्त  माहौल बनता है जिसका सरूर बसंत के आगमन तक बना रहता है !


















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