जंगलों का मिज़ाज - हिंदी कविता Hindi Poetry
जंगलों के मिज़ाज
बारिश की झड़ी के बीच
प्रतीक्षा-रत धूप का निकलना
ठीक वैसे ही जैसे अरसे बाद
आप से हो जाए मिलना
धूप के टुकड़े चमकने को बेताब हैं
अंधेरे में गुम पेड़ों के शिखर तक
पर रस्ते नहीं सूझते इन घने जंगलों में
इन दिनों मध्य प्रहर तक
कब तलक़ हम देख पायेंगे
पौधों पर कलियों का खिलना
बारिश की झड़ी के बीच
प्रतीक्षा-रत धूप का निकलना
कान सुनने को तरस गए हैं
पक्षियों का चहचहाना
क्या झड़ी लगी बारिश की
नदी भूल गई है खिलखिलाना
रात कब से इधर ठहरी है
दिन से कब होगा मिलना
बारिश की झड़ी के बीच
प्रतीक्षा-रत धूप का निकलना
शहरों के दिन रात नियम से रहते हैं
कंक्रीट ने उन्हें रख दिया है बांध कर
वहीं ये उन्मुक्त रहा करते हैं
जंगलों में मौसम के मिज़ाज पर
तभी तो ठीक ठीक पता नहीं चलता
सूरज का उगना और दिन का ढलना
बारिश की झड़ी के बीच
प्रतीक्षा-रत धूप का निकलना
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