सम्बन्धों के पुल दरके हैं ghazal
सम्बन्धों के पुल दरके हैं
उसे नहीं छू सकता कोई जिसका अपना जन आधार
उसको ज़रा नहीं है मुश्किल सहज जीतना यह संसार
उसका कोई नहीं है सानी जिसका सोच नितांत नया
जिसके मन में अक्सर लेता सपना कोई बड़ा आकार
रोज़ बदल कर वेश अनूठे झूठ प्रतिष्ठित है मंचों पर
सच सहमा दुबका बैठा है किसको फ़ुरसत करे प्रचार
पिज़्ज़ा, सिबाता, बेगल और तंदूरी न जाने कितने हैं रूप
जब भी जेब भरी हो अपनी , रोटी के हैं बहुत प्रकार
बारिश में जो पुल टूटे हैं उन पर तो विस्तृत चर्चा है
सम्बन्धों के पुल जो दरके उन पर होता नहीं विचार
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