हिजाबिस्तान - साबयां जावेरी


हाल ही में पढ़ी किताब : हिजाबिस्तान - साबयां जावेरी
पिछले कुछ महीने पहले भारत में हिजाब पहनने और न पहनने  को लेकर बहुत बड़ा विवाद हुआ था जिसमें मानो तलवारें सी खिंच गई थीं . लेकिन एक सप्ताह से मैं साबयां जावेरी की कहानियों का संग्रह हिज़ाबिस्तान पढ़ रहा था , उसे पढ़ कर लगा किसी एक धर्म के नाम पर बने देश में औरत के ऊपर आरोपित धार्मिक प्रतीकों के पीछे उसे कौन कौन से दर्द झेलने पड़ते हैं. हारपर कालिंस से प्रकाशित इस संग्रह की खूबी यह है कि इसके माध्यम से पाकिस्तान की औरतों की घर और पर्दे के पीछे छुपी उनकी ज़िन्दगी के दर्द को बड़े सहज तरीक़े से बयाँ करती है . साबयां पाकिस्तान में जन्मीं ज़रूर हैं लेकिन उन्होंने आक्सफ़ोर्ड में शिक्षा ली , विज्ञापन एजेंसियों  में काम किया और न्यू यॉर्क  विश्व विद्यालय में पढ़ाया . साथ ही वे पाकिस्तान में रह रही महिलाओं के  पर्दे के पीछे के जीवन को भी बड़े क़रीब से देखती रहीं , अगर वह दूसरी संस्कृतियों के बीच जी  कर खुली साँस न लेती तो शायद ये कहानियाँ बेबाक़ी से काग़ज़ पर नहीं उतर पातीं. 
हिज़ाबिस्तान की यह सोलह कहानियां केवल उन महिलाओं जी ज़िंदगी का दस्तावेज नहीं है जो अपने आप को बुरक़े, हिसाब के पीछे ढँक कर रही हैं वरन यह सारे पाकिस्तानी समाज का तजकरा है जो हर चीज़ को ढँक कर रखना चाहता है जिसमें आदमी (ख़ास कर औरतों की ) बेसिक मानवीय इच्छायें और सेक्सुअल भावनाएँ भी शामिल हैं. ये वो चीज़ें हैं जिन्हें दबाए रखने  से को क्षोभ होता है उसको भी लेखिका ने बड़े संजीदा अन्दाज़ में इन कहानियों में बयाँ किया है . यह दरअसल आज के दौर की पर्दे के पीछे रह रही मुस्लिम महिलाओं के जीवन के दुःख दर्दों का आइना भी हैं , और यह उस बंद समाज के लिए ताजी  हवा का झोंका भी लगती हैं . 
आज सुबह मैं एशिया कप में भारत पाकिस्तान की टीम के बीच का मैच देख रहा था उसमें पाकिस्तान की टीम का उत्साह बढ़ाने के लिए जो मुस्लिम महिलायें स्टेडियम में दिख रही थीं उनके चेहरे पर कोई परदा नहीं था ना ही उनके आचरण में कोई बंदिश सी . साबयां की ये कहानियाँ उनसे बिलकुल भिन्न समाज की नज़र आती हैं . 
मैं इन कहानियों के मुत्तलिफ शेड्स का एक छोटी सी झलक देना चाहता हूँ . The Urge की नायिका हिजाब और अभाया के पीछे रहती है जो उसकी वासना और काम उद्देग पर आवरण तो डालता ही है साथ ही उसकी चोरी की आदत को भी छिपा लेता है , उसका बुर्का उसके घर के सामने वाले दुकानदार के सामने अंग प्रदर्शन करने में एक सिडक्टिव माध्यम भी बनता है , उससे शादी भी हो जाती है लेकिन शादी के बाद उसका पति उसकी सिडक्टिव अदा से भय खाने लगता है और इस भय के कारण  नए घर में उसे बंदी जैसा बना देता है . उस जेल जैसे घर में जब वह एक बच्ची को जन्म देती है उसका भविष्य उसके जैसा होगा यही सोच के अपने हाथ में जब लेती है तो उसे इतना दबाती है की वह नवजात निष्प्राण हो जाती है . The Date में किस तरह निम्न मध्यम वर्ग की रिशेप्शनिस्ट अपनी कम्पनी के शादीशुदा स्वामी के जाल में छोटे से प्रलोभन के लिए फँस जाती है और उसके द्वारा दिया गया रेशमी हिजाब उस के साथ सेक्स सम्बंध के लिए एक आवरण का कार्य करता है . उस लड़की के घर वाले यही सोच के खुश हैं कि उनकी लड़की हिजाब पहनने लगी है तो वह धार्मिक बन गयी है. राधा कहानी पाठकों के लिए शॉक ट्रीटमेंट से कम नहीं है. यह एक ऐसी पढ़ी लिखी लड़की है उसका नाम रुकैय्या है लेकिन आधुनिक दिखने  के लिए वो राधा कहलाना पसंद करती है.  वो  एक फ़रमावदार बीबी बनना चाहती  थी , कुछ दिनों रही भी  लेकिन कुछ तो हालात  कुछ आसान पैसे और आरामदेह ज़िंदगी के लिए हाई-सोसाइटी कालगर्ल बन जाती है इस कहानी के माध्यम से पाकिस्तान के माडर्न, पढ़े लिखे , राजनीतिज्ञों की परदों के पीछे रंगीन कारगुजारियां  बताई  गयी  हैं.  उनके द्वारा औरत के साथ हुए बहशी सेक्सुअल बर्ताव को और उनके इन कारनामों को यह हिजाब काफ़ी हद तक छुपा लेता है . वहीं Coach Anie इंगलैंड में रह रही एक ऐसी लड़की की कहानी है जिसका चेहरा अनाकर्षक है जिसके बीमारी से बाल झड़ चुके हैं उसके लिए हिजाब एक सुरक्षा कवच का काम करता है . 
An Irreplaceable Loss और Fifty Shades at Fifty दो ऐसी कहानियाँ हैं जिसमें प्रभावशाली वर्ग की महिलाएँ अपने परदे के वावजूद सेक्सुअलिटी को अपने अपने अन्दाज़ में अन्वेषित करती हैं .
यह कहानी संग्रह साथ ही यह भी बताने की कोशिश करता है कि धर्म आधारित समाज औरत जात के अधिकारों की गारंटी नहीं है .




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