Kavita Rishton Ki Baat
रिश्तों की बात
जब तलक रिश्ता कोई अच्छी तरह पकता नहीं
तब तलक प्यार का अंकुर पनप सकता नहीं
जो मिला है उसकी क़ीमत का तभी एहसास हो
उसको हासिल करने में जूता जरा घिसता नहीं
कितने दुःखों के बोझ से इन दिनों मारा हुआ हूँ
लोग कहते हैं कि यह बंदा तनिक हँसता नहीं
हालात से मज़बूर हैं या ख़ौफ़ का साया लगे
मज़लूम की ख़ातिर भला हाथ अब बढ़ता नहीं
दोस्त मिल के बैठते थे वक्त का एहसास न था
यह पुरानी बात है अब कोई दोस्त दिखता नहीं
कितना मुश्किल है सफ़र जब साथ में कोई न हो
पास में सब कुछ भले हो पर रास्ता कटता नहीं
किताबें कभी चिट्ठियां पहुँचाने का ज़रिया भी थीं
अब किताबों में कोई दिल खोल कर रखता नहीं
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