आपका हुनर कोई नहीं छीन सकता है - नेत्र विशेषज्ञ डा. सत्यार्थी गुप्ता

आज हम एक ऐसी शख़्सियत से आपकी मुलाक़ात कराने  जा रहे हैं जिसने अपनी विलक्षण प्रतिभा के बल पर नेत्रचिकित्सा के क्षेत्र में देश में ही  नहीं देश के बाहर भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाई हैइनका नाम है डासत्यार्थी गुप्ता . 


डागुप्ता का जन्म आज़ादी से पहले पुरानी दिल्ली की उन तंग गलियों में हुआ था जहां का रास्ता या तो अपराध कीदुनिया में जाता था या फिर वहाँ के नौजवानों की ज़िंदगी टायर पंचर बनाते , मेहनत मजूरी करते कट जाती थी . युवासत्यार्थी को यह सब मंज़ूर नहीं था , पूरी तरह पढ़ाई पर  फ़ोकस किया , मेडिकल में चुनाव हो गया , मौलाना आज़ादमेडिकल कालेज से पहले MBBS डिग्री और फिर बाद में नेत्र चिकित्सा में विशेष योग्यता  हासिल की . 1965 में  नौकरीकी शुरुआत की . डागुप्ता कुछ ही दिनों में कोरोनिया के जाने माने विशेषज्ञ बन गए , बहुत ही युवा अवस्था में विभाग केप्रमुख बन गए . यह शोहरत अन्य विशेषज्ञों को आसानी से हज़म नहीं हो पा रही थी , ओछी राजनीति के चलते उस पद परकिसी दूसरे को बिठाने की दुराभिसंधि चल रही थी . यह बात 1971 की है . तब तक डागुप्ता की शादी हो चुकी थी बच्चेभी थे . इस राजनीति का दुश्चक्र तोड़ने के लिए उन्होंने एक अलग ही रास्ता चुना , फ़्लाइट लेकर अमेरिका  गए .


लूसियाना के  ट्युलीन मेडिकल कालेज में साक्षात्कार के लिए पहुँचेवहाँ पर साक्षात्कार में सवाल पूछा गया , आख़िरआप को इस जॉब के लिए क्यों चुना जाएडागुप्ता का उत्तर था ,”मेरी प्रष्ठभूमि और अनुभव अगर आपको समझ आता  है तो ठीक है नहीं तो मैं कुछ और देख लूँगा.” जब की सचाई यह थी कि डागुप्ता के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था . बोर्ड को उनका यह आत्मविश्वास पसंद आया और चौबीस घंटे के अंदर उनको नियुक्ति-पत्र भेज दिया . डागुप्ता कीशोहरत कोरनिया विशेषज्ञ के रूप में न्यू ओरलिंस में फैलने लगीलेकिन यहाँ भी आंतरिक राजनीति ने पीछा नहीं छोड़ा , दुराभिसंधि के तहत डागुप्ता को एक अन्य पद आफ़र किया गया जिस का वेतन गोरे अमेरिकी डाक्टर की तुलना में आधाथा . 


डागुप्ता ने यहाँ भी समझौता नहीं किया . उसी इलाक़े में अपना ऑफ़िस प्रारम्भ किया और अपनी पत्नी डासुषमा केसाथ स्वतंत्र प्रैक्टिस  करना शुरू कर दिया . शोहरत तो आस पास में फैल ही चुकी थी , सेंट तम्माहने , ट्युलीन हेल्थ केयरऔर कितने ही अन्य हास्पिटल भी नियमित रूप से अगले पैंतालीस वर्ष तक उनकी सेवाओं का लाभ उठाते रहे .


डागुप्ता अस्सी साल की उम्र में भी रोज़ाना 15,000 स्टेप्स टहलते हैं और उनकी जीवन संगिनी डासुषमा भी बराबरउनके साथ टहलती हैं . उनके अनुसार सुबह सवेरे टहलना ही उनके चुस्त दुरुस्त रहने का रहस्य है

डागुप्ता का कहना है कि उन्होंने अपना जीवन केवल दो सेंटी मीटर के दायरे (यानि आँख ) तक सीमित रखाउससेसम्बंधित नई नई शोध में रमे रहे उसी में महारथ हासिल कीकोई आश्चर्य नहीं वे अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्र में अन्य सेकहीं आगे निकल गए .


मैं पूछता हूँ , “आप कभी झुके नहीं , आपने ज़िंदगी में कभी समझौता नहीं किया . आख़िर आपको अन्याय के साथ लड़नेकी शक्ति कहाँ से आती है ?”

उनका उत्तर था , “ अगर आपको अपनी स्किल पर भरोसा है तो कोई ताक़त आपको पराजित कर सकती है . आपका धनआपकी सम्पत्ति , आपकी मूल्यवान वस्तुएँ आप से कोई जबरन ले सकता है लेकिन आपका हुनर आपकी स्किल कोईछीन नहीं सकता है . आप इसी के बल पर अन्याय से लड़ सकते हैं .” साथ ही उन्होंने बताया कि जिस व्यक्ति को उनकेस्थान पर स्थापित किया गया वो कभी देश की सीमा के बाहर तक नहीं जा सका


डागुप्ता ने लगातार 56 वर्षों तक अपने कौशल और विशेषज्ञता के बल पर लोगों की ज़िंदगी बेहतर बनाने का निरंतरप्रयास किया है , उनके बच्चे अपने अपने क्षेत्रों में बेहतर कार्य कर रहे हैं . 



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